जानें क्यों मरते हैं 100 वर्ष से पहले और किसे आती है जल्दी मौत
पृथ्वी पर जन्म लेने के पश्चात् मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, जिसे हम चाह कर भी झुठला नहीं सकते। सत्य यह भी है कि हम सभी इसी शाश्वत सत्य यानी मृत्यु से डरते हैं। यह जानते हुए कि हमें एक न एक दिन इस गति को प्राप्त होना है। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक घड़े में छेद हो जाने के बाद उसका पानी धीरे-धीरे खत्म हो जाना है।
प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर ने कहा है कि ‘यह सोचना कि अमुक वस्तु सदा बनी रहेगी, यह सबसे बड़ा अज्ञान है। जिस तरह से पंछी अपने घोंसले को त्याग कर उड़ जाता है, उसी तरह आत्मा भी इस देह को त्याग कर चली जाती है।’
संत कबीर ने कहा है कि – ‘वैद्य, धनवंतरि मरि गया, अमर भया नहीं कोय।’ धनवंतरि जैसा वैद्य शायद ही कोई जन्मा हो। जब उसे इस मृत्यु से काई नहीं बचा पाया तो कहना ही क्या। कहने का तात्पर्य यह कि सभी को जाना होता है।
इनका होता है जल्द मृत्यु से सामना
धृतराष्ट्र ने परमज्ञानी विदुर से जब पूछा कि हम कैसे कर्म करें कि मृत्यु कल्याणी आने में देरी करें? विदुर ने कहा कि बहुत ही अभिमान, अधिक बोलना, त्याग की कमी, अपना ही पेट पालने की चिंता, स्वार्थ और मित्र द्रोह यही छः तेज तलवार मनुष्य का वध करती है न कि मृत्यु। मनुष्य या जीव को मृत्यु ने मारने में कठिनाई बताई है लेकिन यदि उक्त बातें हैं तो मृत्यु जल्दी आती है।
श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि ‘मृत्युश्ररति मदभयात्’। हमारा भारतीय चिंतक यह कहता है कि – मृत्यु को चाहे जितना भयानक और कठोर समझा जाय वह भगवान के विधान से अनुशासित है। वह अनुशासन के नियम से एक पग भी इधर-उधर नहीं रख सकती क्योंकि वह पूर्ण सत्य है।