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करिश्मा ऋण का

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Kid Story in hindi एक गांव में बुद्धू नाम का आदमी अपनी पत्नी और पांच बच्चों सहित रहता था। उसके पास थोड़ी-सी जमीन थी, जिसकी उपज उसके परिवार के लिए काफी नहीं होती थी। खाने की चीजें खरीदने के लिए उसे काम करके पैसे भी कमाने पड़ते थे। एक बार उन्होंने जमीन में पेठे के बीज बोए। बहुत दिनों तक उसे कोई काम नहीं मिला। बुद्धू को चिन्ता होने लगी कहीं उसके बाल बच्चे भूखे ही न मर जायें। उसने अपने मित्रों और रिस्तेदारों से उद्दार लेने की चेष्टा की, मगर वहां से भी निराशा ही हाथ लगी। एक सुबह बुद्धू की पत्नी मुस्कुराती हुई उसके पास आई। ‘पेठे बाज़ार के लिए तैयार हैं वह भी पंद्रह, ज़रा सोचो उन्हें बेचने के बाद हमारे पास काफी पैसे हो जायेंगे।’
दूसरे दिन सुबह होते ही बुद्धू बाज़ार की ओर चल पड़ा, बड़े टोकरे में पंद्रह पेठे उसने सिर पर उठा रखे थे। बाज़ार वहां से काफी दूर था और बुद्धू जब वहां पहुंचा तो बहुत थक चुका था। एक अच्छा सा स्थान देखकर उसने टोकरा उतार कर सामने रखा और बैठकर ग्रहकों की प्रतिक्षा करने लगा। इतने में एक हृष्टपुष्ट आदमी उसके पास आया, उसके साथ तीन और आदमी थे जिनके चेहरे से ही दुष्टता टपकती थी।

‘एक पेठा मुझे दो’ वह आदमी बोला। बुद्धू एक क्या सारे पेठे उसे बेचने को तैयार था। ‘आप इसका मुझे क्या दाम दोगे?’ बुद्धू ने पूछा।
‘क्या दूंगा?’ वह आदमी चिल्लाया- ‘मैं तुम्हें एक कौड़ी भी नहीं दूंगा। एक पेठा तो तुम्हें मुझे देना ही है क्योंकि यह राजा का कर है।’
बुद्धू ने उस आदमी और उसके साथियों की ओर देखा, वे सब झगड़ने के लिए तैयार लगते थे। बुद्धू झगड़ा नहीं करना चाहता था, उसने उसे एक पेठा देकर विदा किया और चैन की सांस ली।
‘थोड़ी देर में- एक पेठा दो। यह सरकारी कर है।’ वह चिल्लाया। बुद्धू ने उस आदमी और उसके साथियों को देखा। यह सोचकर कि देने से इन्कार करना खतरनाक होगा, उसने उन्हें एक पेठा दे दिया और वे सब चले गये।
इतने में एक तीसरा कर लेने वाला आ गया। बुद्धू को बड़ा गुस्सा आ रहा था लेकिन उसमें इन्कार करने की भी हिम्मत न थी। वह इन सब बदमाशों से कैसे लड़ सकता था? उसने उन्हें भी एक पेठा दे दिया। ‘चलो, जब आदमी चले गये तो बुद्धू बड़बड़ाया- ‘अब भी मेरे पास बारह पेठे बेचने के लिए हैं।’

लेकिन ऐसा कब होना था एक के बाद एक कर संग्रहकर्त्ता आते गये और प्रत्येक के साथ आया आवारा लोगों का एक दल। एक-एक करके बुद्धू के सारे पेठे कर संग्रहकर्त्ता ले गए तो बुद्धू के पास एक भी पेठा न बचा। अब उसकी टोकरी खाली थी और अब वह घर लौटने के अलावा कर भी क्या सकता था। जैसे ही वह घर चलने को तैयार हुआ तो उसके सामने खड़ा था सोलहवां कर संग्रहकर्त्ता।
‘जल्दी से कर दो।’ कर संग्रहकर्त्ता बोला। मैं कैसे दे सकता हूं? बुद्धू ने पूछा- ‘अब तो मेरे पास कोई पेठा बाकी नहीं।’ कर लेने वाले को और उसके साथियों को बड़ा गुस्सा आया वह बोला कि कर तो उसे देना ही पड़ेगा। यदि उसके पास पेेठा या पैसे नहीं हैं तो वह उन्हें कर के रुप में टोकरी तथा पगड़ी ही दे दे।

बुद्धू बेचारा अपने पेठे, टोकरी तथा पगड़ी खोकर घर पहुंचा। पत्नी तथा बच्चे बड़ी उत्सुकता से उसकी प्रतिक्षा कर रहे थे कि बाज़ार से वह उन सबके लिए क्या लेकर आएगा। उसने सारी आप बीती उन्हें सुनाई। बुद्धू बड़ा दुखी-सा बैठा था। उसकी पत्नी भी बड़ी दुखी थी, वह कुछ देर सोचकर बोली- ‘मेरी समझ में आया कि क्या करना चाहिए। सुनो कल सुबह ज़रा जल्दी उठकर बाज़ार जाने के लिए तैयार हो जाना।’
यह कहकर वह बाहर गयी और गांव के छः बदमाशों को दूसरे दिन सुबह अपने पति के साथ जाने के लिए कह आयी। बुद्धू की पत्नी ने सुबह बुद्धू को ऐसे कपड़े पहनाए जिनसे वह एक राजकुमार-सा दिखने लगा। उसके सिर पर उसने मोर पंख लगी हुई बड़ी-सी पगड़ी पहनाई।

जब गांव के छः लोग भी आ गए तो उसने सबको समझाया कि उन्हें क्या-क्या करना है और सबको बाज़ार रवाना कर दिया। बुद्धू और उसके साथी जल्दी ही बाज़ार जा पहुंचे। बड़े साहस से बुद्धू ने पहले दुकानदार के पास जाकर रानी के नाम का कर मांगा। उस दुकानदार को भी सोलह संग्रहकर्ता परेशान कर चुके थे। इस बार वे चिल्ला उठा-
‘यह कौन-सा नया कर है? मैं यह नहीं दे सकता।’ बुद्धू के मित्रों ने लाठियां उठा ली। ‘गुस्ताख आदमी, तुम नहीं जानते।’ बुद्धू बोला- ‘कि रानी का चचेरा भाई हूं? जल्दी से कर दे दो, नहीं तो मेरे मित्र तुम्हें समझा लेंगे। दुकानदार बेचारा डर गया। उसने जल्दी से कर दे दिया। बुद्धू अब अगली दुकान पर गया। वहां भी उसने अपना पार्ट बड़ी खूबी से निभाया और कर इकट्ठा किया। यदि कोई आपत्ति करता तो वह कहता कि वह रानी का भाई है। बुद्धू ने जब सब दुकानदारों से कर ले लिया तो घर लौटा व जितना पैसा मिला था उसे बुद्धू और उसके साथियों ने बराबर बांट लिया।

बुद्धू अब प्रति दिन कर इकट्ठा करने लगा और उसकी गरीबी दूर हो गयी। लेकिन सब दुकानदारों का बुरा हाल था, आखिराकार सारे दुकानदार इकट्ठे हुए और इस बात पर विचार विमर्श किया कि करों से छुट्टी पाने के लिए क्या किया जाए। अंत में उन्होंने अपनी शिकायत लेकर राजा के पास जाने का निश्चय किया। राजा उनसे अच्छी तरह मिला और उनकी बात बड़े ध्यान से सुनी, तब उसने बुद्धू को बुलवाया।
उसने रानी के नाम से कर इकट्ठा करने का साहस कैसे किया? राजा ने बुद्धू से पूछा- ‘रानी कहां से आएगी? जब अभी तक मेरा विवाह भी नहीं हुआ।’
‘क्षमा कीजिए, महाराज!’ बुद्धू ने उत्तर दिया- ‘मुझे ऐसा करने के लिए मेरी पत्नी ने कहा था उसका कहना था कि केवल इसी तरीके से हम भूख से मरने से बच सकते हैं।’

बुद्धू ने तब अपने पंद्रह पेेठों की कहानी सुनाई। राजा ने कुछ देर सोचकर ऐलान करवा दिया कि सब कर समाप्त किए जाते हैं सिवाय एक कर के जो सरकार के लिए होगा। बुद्धू को उसने कर संग्रहकर्त्ता नियुक्त कर दिया। ‘लेकिन’ वह बोला- तुम इस कर के धन में से अपने लिए कुछ भी नहीं ले सकते। सारा एकत्रित द्दन राजा के कोष में जमा कराना होगा। तुम्हें इस काम के लिए हर माह एक अच्छा वेतन दिया जायेगा। उस दिन से बुद्धू अपने बच्चों और पत्नी के साथ आनन्द पूर्वक रहने लगा।

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