कथा सरितसागर – पुष्पदंत और माल्यवान को शाप भाग -2
पार्वती का यह उलाहना सुन भगवान ने देखा कि वह सचमुच रूठ गई हैं। अतः उन्होंने पार्वती को एक दिव्य कथा सुनाने का वचन दिया। तब पार्वती ने नंदी को आज्ञा दी कि भगवान द्वारा कहानी सुनाते समय कोई भी व्यक्ति अंदर न आने पाए। इसके बाद भगवान शिव कथा सुनाने लगे।
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”प्रिय! एक देवों की सृष्टि है, जो सदा सुखी रहते हैं। दूसरी मानवी सृष्टि है, जो सदा दुःखी रहते हैं। इनके विषय में तुम सब कुछ जानती ही हो, अतः मैं इनके विषय में तुम्हें कोई कहानी नहीं सुना रहा हूं, आज मैं तुम्हें विद्याधरों की कहानी सुनाता हूं, जो देवताओं और मनुष्यों का मिला-जुला रूप है।“
भगवान शिव जिस समय यह कहानी सुना रहे थे, उनका एक विशेष कृपापात्रा गण पुष्पदंत द्वार पर आ खड़ा हुआ। वह अंदर आना चाहता था, ¯कतु द्वारपाल नंदी ने उसे अंदर नहीं जाने दिया, इस पर वह अपनी योग की शक्ति से गुप्त रूप से अंदर चला गया। नंद को उसके इस कार्य के विषय में कुछ भी पता न चल सका। भगवान शिव ने पार्वती को सात विद्याधरों की अदभुत कथा सुनाई, जो अब तक किसी ने भी नहीं सुनी थी। इस कथा को पार्वती के साथ ही पुष्पदंत ने भी छिपकर सुन लिया।
पुष्पदंत ने घर जाकर यह कथा अपनी पत्नी जया को भी सुना दी। जया पार्वती की सखी थी। स्त्रियों के पेट में बात नहीं पचती, एक दिन जया ने अपने पति से सुनी सात विद्याधरों की कथा पार्वती को सुना दी। पार्वती को इससे बड़ा आश्चर्य हुआ, वह विचार करने लगीं कि भगवान शिव तो कहते थे, यह कथा किसी ने नहीं सुनी है तो क्या इसका अर्थ यह हुआ कि उन्होंने मुझसे झूठ कहा और पुष्पदंत को पहले ही यह कथा सुना दी थी।
एक दिन रूठने पर पार्वती ने शिव से कहा, ”आप वास्तव में बड़े ही धूर्त हैं। आपने तो कहा था कि सात विद्याधरों की कथा को कोई नहीं जानता, तब उसे मेरी सखी जया कैसे जानती है?“
पार्वती के मुंह से यह सुनकर भगवान शिव आश्चर्य में डूब गए कि इस कथा को जया ने कैसे जान लिया! उन्होंने अपनी योगशक्ति का सहारा लिया और ध्यान लगाते ही सारी वस्तुस्थिति स्पष्ट हो गई कि पुष्पदंत ने छिपकर कथा सुन ली थी।
भगवान शिव बोले, ”प्रिये! मैं सत्य कहता हूं, पहले जया भी यह कथा नहीं जानती थी। उस दिन जब मैं तुम्हें कथा सुना रहा था, पुष्पदंत योगबल से छिपकर यहां आ गया, और उसने कथा सुन ली। उसी ने यह कथा जया को सुनाई।“
इतना सुनते ही पार्वती क्रोध से भर उठीं। उन्होंने तत्काल पुष्पदंत को बुला भेजा। उन्हें माल्यवान नामक एक अन्य गण पर भी क्रोध था, उसे भी बुलाया गया। दोनों भयभीत होकर पार्वती के पास आए।
पार्वती ने पुष्पदंत और माल्यवान को शाप देते हुए कहा, ”तुम दोनों को शिव की सेवा से पृथक् किया जाता है। अब तुम मनुष्य लोक में जाकर रहो।“
पुष्पदंत ने घर जाकर अपनी पत्नी जया को पार्वती के शाप के विषय में बताया। जया पुष्पदंत और माल्यवान को लेकर पार्वती की शरण में गई। तीनों ने रोते हुए पार्वती से बहुत अनुनय-विनय की, अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। तब पार्वती ने कहा, ”कुबेर के शाप से सुप्रतीक नाम का यक्ष पिशाच बन गया है, जिसका नाम अब कारणभूति है। वह विन्ध्य के वन में रहता है। जब पुष्पदंत उससे मिलेगा तो उसे अपने इस शाप की याद आ जाएगी। उसे इस विषय में सुनाने पर पुष्पदंत को शाप से मुक्ति मिल जाएगी।“
फिर वह माल्यवान के विषय में बोलीं, ”माल्यवान भी कारणभूति से मिलेगा और फिर यह कारणभूति शाप की इस कथा को कई मनुष्यों को सुनाएंगे। इससे इन दोनों को शाप से छुटकारा मिल जाएगा।“
पार्वती के इन शब्दों को सुनकर उन तीनों ने राहत की सांस ली। समय बीतता गया। तब कभी पार्वती ने शिव से पूछा,
”भगवान! मैंने आपके जिन गणों को शाप दिया था, वे दोनों इस समय कहां पर हैं?“
इस पर भगवान शिव ने बताया, ”प्रियतमे! पुष्पदंत ने भारतभूमि की कौशांबी नामक नगरी में जन्म लिया है। इस समय उसका नाम वररुचि है। माल्यवान ने सुप्रतिष्ठित नामक नगर में गुणाढ्य से जन्म लिया है।
शेष अगले भाग 3 में पढ़ें :
भाग -1 कहानी यहाँ पढ़ें : कथा सरितसागर – पार्वती-शिव-संवाद भाग -1