काल सर्प योग उपाय
जब जन्मस्थ कुंडली में राहु-केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाते हैं, तो काल सर्प दोष बनता है।
उपाय : अमावस्या के दिन श्याम को 3 नारियल, 1 किलो कच्चे कोयले ले जा कर बहते पानी में डालें। पहले एक-एक कर नारियल डालें, फिर एक साथ सभी कोयले डाल दें। फिर अपने घर वापिस आ जाएं। ऐसा तीन अमावस्या को करें। एक भी नागा न हो तथा महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥) का नियमित यथा्यक्ति प्रतिदिन जाप करें। जाप करने की स्थिति, या मानसिकता नहीं हो, तो महामुत्युजंय मंत्र का कैसेट बाजार से खरीद लाएं तथा घर में रोजाना प्रातःकाल बजाएं, जिससे घर का वातावरण अनुकूल बन सके।
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ
- त्रयंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक)
- यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
- सुगंधिम्= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
- पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
- वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
- उर्वारुकम= ककड़ी (कर्मकारक)
- इव= जैसे, इस तरह
- बन्धनात्= तना (लौकी का); (“तने से” पंचम विभक्ति – वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
- मृत्योः = मृत्यु से
- मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
- मा= न
- अमृतात्= अमरता, मोक्ष
सरल अनुवाद
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग (“मुक्त”) हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों.
कलियुग में केवल शिवजी की पूजा फल देने वाली है। समस्तं पापं एवं दु:ख भय शोक आदि का हरण करने के लिए महामृत्युजय की विधि ही श्रेष्ठ है। निम्निलिखित प्रयोजनों में महामृत्युजंय का पाठ करना महान लाभकारी एवं कल्याणकारी होता है।
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