कर्म करना बहुत अच्छा है पर वह विचारो से आता है -प्रेरणादायक विचार
जो सचमुच दयालु है, वही सचमुच बुद्धिमान है,
और जो दूसरों से प्रेम नहीं करता उस पर ईश्वर की कृपा नहीं होती।
फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है,
तथापि विद्वान और महात्मा लोग अच्छी तरह विचारकर ही कोई काम करते है।
कर्म करना बहुत अच्छा है पर वह विचारो से आता है,
इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारो एवं उच्चतम आदर्शो से भर लो,
उन्हें रात-दिन अपने सामने रखो, उन्हीं में से महान कर्मो का जन्म होगा,
ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता।
निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और,
ईश्वर उसे फल सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है।
हम सभी ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं और,
वही प्रार्थना हमें दया करना भी सिखाती है।
पहले कहना और बाद में करना इसकी अपेक्षा,
पहले करना और फिर कहना अधिक श्रेयस्कर है।
प्रेम और दया के तुम्हारे छोटे-छोटे विस्मृत कार्य,
अच्छे मनुष्य के जीवन के सबसे अच्छे भाग होते है।
खाली बैठना दुनिया में सबसे थकाने वाला काम है,
क्योंकि सर्वस्व त्याग देना और आराम करना असंभव है।
कर्मयोगी अपने लिए कुछ करता ही नहीं।
अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता और अपना कुछ मानता भी नहीं।
इसलिए उसमे कामनाओं का नाश सुगमता पूर्वक हो जाता है।
जैसे फूल और फल किसी की प्रेरणा के बिना ही
अपने समय पर वृक्षों में लग जाते है,
उसी प्रकार पहले के किये हुए कर्म भी,
अपने फल-भोग के समय का उल्लंघन नहीं करते।
सच्चा काम अहंकार और स्वार्थ को छोड़े बिना नहीं होता।
जैसे तेल समाप्त हो जाने से दीपक बुझ जाता है,
उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव नष्ट हो जाता है।
काम को आरम्भ करो और अगर काम शुरू कर दिया है,
तो उसे पूरा करके ही छोड़ो।
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