Moral Story : महाराजा रणजीत सिंह का सच्चा न्याय
महाराजा रणजीत सिंह का सदा ही यही प्रयास रहता था कि जनता सुख और शांति का जीवन व्यतीत करे। कोई उन पर अत्याचार न कर सके। तथा न्याय सदा सच्चे व्यक्ति के ही हित में हो।
एक बार दरबार में एक बुढ़िया आई। पहले उसने रणजीत सिंह को जी भर आर्शीवाद दिया फिर बोली, ‘बेटा मैं तुझसे न्याय मांगने आई हूँ। और घर के आंगन में एक कँुआ है सामने ही मेरे एक धनवान रिश्तेदार रहते हैं। कुँआ मेरा है
लेकिन उस रिश्तेदार ने कुँआ अपने अधिकार में कर रखा है। मुझे उसमें से पानी तक नहीं भरने देता है। मैं अकेली विधवा बुढ़िया दूर से पानी भर कर लाती हूँ। मेरे साथ न्याय कर बेटा मेरा कुँआ मुझे दिलवा दे।
महाराज को बुढ़िया की बात में सच्चाई झलकी उन्होंने कहा बुढ़िया के गाँव और घर का पता लिया और बुढ़िया को आश्वासन देकर भेज दिया।
कुछ दिन बाद घोड़े पर सवार रणजीत सिंह वहाँ पहुँचे। अंगरक्षकों से चुपचाप कुँएं का पता लगवाया और उसकी जगह पर जा बैठे। फिर उस बुढ़िया के रिश्तेदार को बुलवा कर बोले, ‘देखो सुना है यह तुम्हारा कुँआ है। अभी हमारी हज़ार सोने की मुहरों की थैली कुँएं में गिर गई है उन्हें निकालकर हमें पेश करो। या ऐसा करना कल दरबार में ले आना।’
महाराज की बात सुनकर वह घबरा गया और तुरंत बोला, ‘महाराज यह कुँआ तो सामने घर वाली बुढ़िया का है। वो तो मैं बस काम में ला रहा हूँ।’
‘हूँ’ कहकर महाराज ने अंगरक्षक भेजकर बुढ़िया को बुलवाया और कहा, ‘क्यों माई यह कुँआ तुम्हारा है?’
बुढ़िया सामने उस रिश्तेदार को देखकर डर गई और हकलाती हुई बोली, ‘जी हुज़ूर।’
‘डरो नहीं यह व्यक्ति खुद ही कह रहा है कि यह कुँआ तुम्हारा है। अब तुम आराम से इसे काम में लाओ। फिर यदि तुम्हें कोई परेशान करे तो दरबार में इत्तला करना।’
यह कहकर महाराज घोड़े पर चढ़ चल दिये। रिश्तेदार अवाक देखता रह गया और सारे गाँव वाले वाह-वाह कर उठे।