‘भारत’ को ‘भारत’ रहना है तो ‘स्व’ का अवलंबन करना होगा और उसे हिन्दू रहना होगा : भागवत
ग्वालियर, 28 नवंबर । ज्ञान उत्पन्न करना, बोध उत्पन्न करना.. यह काम आज सभी माध्यमों का है, घर में माता पिता का है। विद्यालय में शिक्षकों का है। समाज में संवाद माध्यमों का है। लोककलाओं से लेकर सोशल मीडिया तक सभी का यह काम है कि वह स्व बोध से ज्ञान को प्रसारित करें। तभी हम फिर से विश्व का नेतृत्व करेंगे। दुनिया भारत की ओर देख रही है, भारत बड़ा बनेगा, यह सभी समझ रहे हैं। हमारा एक स्व है, हिन्दू है तो भारत है, हिन्दुत्व है तो भारत है, अन्यथा भारत का कल्पना कैसी? उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने शनिवार को स्वदेश समाचार पत्र समूह के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित स्वर्ण जयन्ती वर्ष समारोह कार्यक्रम में कहीं।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने स्व से हमें दूर कर दिया। उन्होंने बताया कि तुम बाहर से आए फिर समय-समय अन्य भी बाहर से आते रहे, शासन करते रहे। हम भी बाहर से आए हैं। उन्होंने थ्योरी गढ़ी आर्य-द्रविड़ की। उन्होंने हमारे दिमागों में भरा तुम्हारी एक भाषा नहीं, तुम्हारी एक संस्कृति रहन-सहन नहीं। तुम्हारी यह विविधता बताती है कि तुम सब अलग-अलग हो। वास्तव में उन्होंने योजना बद्ध तरीके से हमको अपने सत्व से दूर कर दिया। बुद्धि भ्रमित कर दी। आज आप विचार करें, दुनिया के कई देश मिट गये जहां से लेकिन हम नहीं मिटे तो क्यों? इसलिए क्योंकि स्वदेश ध्यान में रहा।
डॉ भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय पत्रकारिता ने अपने समय में अंग्रेजों की इन्हीं सब बेकार की बातों का खूब अच्छी तरह से प्रतिकार किया। प्रबोधन किया। फिर जागरण के प्रयास हुए और यह स्वबोध की जागृति भारतीय समाज में समय-समय पर होती रही, इसलिए आज भी हमारा प्रखरता से अस्तित्व है। उसका यह परिणाम है कि दुनिया भारत को लेकर विचार कर रही है कि भारत बड़ा बनेगा। अब यह दायित्व हमारे ऊपर है कि हमें कैसे इस दायित्व को पूरा करना है। कुछ भी सोचने के पहले हमें सोचना होगा कि मेरा जो उपनिशीकरण हुआ है, उसे मैं पीछे छोड़ पा रहा हूं कि नहीं, इसलिए स्व का ज्ञान और उस स्व विवेक के आधार पर निर्णय करना और जीवन जीने की हमें आज आवश्यकता है।
इस दौरान उन्होंने स्वदेश समाचार पत्र समूह को लेकर कहा कि जिस संकल्प से पूजनीय सुदर्शन जी के आर्शीवाद और अटल जी, राजमाता जी, मणिकचंद वाजपेयी जी और अन्य समर्पित पत्रकारों के तप से ये कार्य शुरू हुआ है। उसे सूर्य के समान सतत् प्रदीप्तिमान रहने की आवश्यकता है। जैसे सूर्य उदयमान रहता है तब भी और जब अस्तांचल को जाता है तब भी लाल ही है, इसी तरह से समृद्धि की स्थिति हो या कष्टमय, कहना होगा कि ध्येय निष्ठ पत्रकारिता सदैव ही एक समान राष्ट्र की श्रेष्ठता के विचार को ही आगे रखकर चलती है। पिछले 50 साल से किस ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता पर राष्ट्र का सदैव चिंतन करने वाले पत्रकार चले हैं, इसके बारे में हम सोंचे। एक गीत हुआ, ”भारत यह रहना चाहिए” तो स्वदेश में देश तो है ही देश की भलाई के लिए पत्रकारिता, मनुष्य के प्रबोधन के लिए पत्रकारिता, सब के सामने सारी स्थिति स्पष्ट हो, इसके लिए विवेक बने इसके लिए पत्रकारिता भी है।
उन्होंने कहा कि सुदर्शन जी संघ के प्रचारक थे, संघ का मुख्यकाम शाखा चलाना है इस समाचार पत्र की जरूरत का विचार कहां से आया उनके मन में। वह इसलिए कि इसकी आवश्यकता समाज जीवन में है। ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता भारत की जरूरत है। भारतीयता के बोध जागरण के लिए इसका होना अति आवश्यक है। डॉ भागवत ने कहा कि दो शब्द हैं स्व और देश, दोनों का अपना महत्व है। इससे भी महत्व का है हमारी इस भूमि में परम्परा से स्व और देश अलग नहीं होना। स्वदेश का भाव यदि हम सभी के भीतर विद्यमान है तो समझ लीजिए सब कुछ सही है।
इसके साथ उन्होंने इजराइल का उदाहरण देते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव का उदाहरण दिया। जिसमें उन्हें अफ्रीका में वर्तमान इजराइल से भी बड़ा, बहुत उपजाऊ भूमि दी जा रही थी, लेकिन इजराइल के लोगों ने कहा मातृभूमि नहीं बदलती। उस भूमि के साथ हम जुड़े हैं। यहूदियों को इस भूमि से अलग करके जैसे नहीं देखा जा सकता, वैसे ही भारत को भी इस भारत भूमि से हिन्दुत्व और हिन्दुओं से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। हमारा स्व है। यहां परम्परा से हिन्दू रहते आए हैं। जो भी इस दिशा में विकास हुआ है वह भारतीय है, संगीत हो या अन्य वह भारतीय संगीत भारत में उपजा है। भारत की सभी बातें भारत की भूमि से जुड़ी हैं। संयोग से भी यह सभी कुछ हिन्दुओं-हिन्दुत्व से जुड़ा हुआ है।
डॉ भागवत ने कहा कि पश्चिम का विचार भोग एवं स्वार्थ आधारित है, उसका काम ग्लोबल मार्केट बनाना है। पर भारत का दर्शन विश्व को अपना मानते हुए व्यवहार करने के लिए कहता है। कुटुम्ब की बात भारत के अलावा कोई नहीं करता। भारत के पास एक सत्य है, जो विचार है वह संपूर्ण विश्व का सत्य है। हमारा जन्म उपभोग के लिए नहीं तपस्या के लिए है। संयम से जीवन जीना है। इसलिए कोई पराया नहीं, सब घट मेरा। इसलिए जो मुझको खराब लगता है, ऐसा व्यवहार किसी के साथ मत करो।
उन्होंने कहा कि पहले किसी को भी मालूम नहीं था भारत वास्तव में है क्या, इसलिए हम अंदर सुरक्षित रहे। यहां कोई चोरी-छल करने की जरूरत नहीं सब कुछ सब के लिए है। पहले कोई बाहर से आ गया तो उसका भी स्वागत है, हमने जो सोचा सब की भलाई के लिए सोचा, इसलिए हम ऐसे बने, विश्व का हर देश सत्य की खोज में लड़खड़ाया, पर हम खड़े रहे। वह सत्य की पहचान करने हमारे पास आया। आज जिसे हमें हिन्दू कहते हैं, हिन्दू संस्कृति, हिन्दुत्व कहते हैं। इसको लेकर सत्य, करुणा, सुचिता और निष्कपट यह चार तत्व हैं, जो आज पूरी दुनिया को हमें देना है।
डॉ भागवत का कहना है कि आज जिसे हम घुमन्तु कहते हैं, ये सारे घुमन्तु लोग उन ऋषियों के अभियान का हिस्सा हैं, जोकि ज्ञान-विज्ञान और सनातन संस्कृति को हर घर पहुंचाना चाहते थे। वह घर छोड़कर जानबूझकर निकले, समाज को ज्ञान देने। सोचें, कितना बड़ा अभियान चला होगा। ब्रिटिशों ने जिन्हें अपराधी करार दिया था, वह वास्तव में उन ऋषियों के अभियान का हिस्सा हैं जो सभी घरों तक हिन्दुत्व को पहुंचा रहे थे। आज भी वे यही कर रहे हैं। कितना बड़ा काम कर रहे हैं। जब वे काम करने निकलते हैं तो पहले अपने देवी-देवताओं का वंदन करते हैं। उन्हीं के कारण भारत खड़ा हुआ होगा, इसलिए भारत हिन्दू राष्ट्र है, भारत से हिन्दू अलग नहीं हो सकता यही सत्य है। भारत को छोड़कर हिन्दुओं का इतिहास क्या लिखेंगे। हिन्दू के बिना भारत नहीं।
भारत टूटा, क्यों टूटा, पाकिस्तान बना क्यों बना क्योंकि हम अपने हिन्दू भाव को भूले। भारत टूट गया। हिन्दू भाव नहीं रहा तो भारत, भारत नहीं रहा। अपने देश में भी देख लो, जहां-जहां भी दिक्कतें हैं। आप देखिए वहां हिन्दुत्व का भाव कम हुआ, उनकी शक्ति-संख्या कम हुई, वहां वह टूट गया। कमजोर हुआ। भारत को भारत रहना है तो उसे स्व का अवलंबन करना होगा, उसे हिन्दू रहना होगा। नहीं तो भारत भारत नहीं रहेगा। कुल मिलाकर हमारा अस्तित्व हमारे स्व के कारण से है। हमारा एक स्व है। अध्यात्म के आधार पर एकान्त में साधना, लोकान्त में परोपकार, शक्ति के आधार पर सर्वत्र सुरक्षित रहना किसी को हानि नहीं पहुंचाना यह सुनिश्चित करने वाले हम हिन्दू हैं। हम दूसरे कोई नहीं बन सकते। हम जो हैं वैसे हम रहेंगे तो हम हिन्दू हैं। हमें यही होना होगा। हिन्दू को भी हिन्दू भाव से चलना होगा, इसलिए भारत को एकात्म अखण्ड रखना होगा, इसलिए हम कहते हैं स्वदेश तो इन सभी बातों को ध्यान में रखना होगा।
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने भी अपना उद्बोधन पत्रकारिता आधारित दिया और ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के महत्व को सभी के बीच समझाया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता ने व्यवसायिक युग में काफी बदलाव का सामना किया है। मूल्यों के बजाय न्यूज़ वैल्यू के हिसाब से देश और समाज को देखा जा रहा है। ऐसे में मूल्य आधारित पत्रकारिता को बनाए रखना बड़े गर्व की बात है। इस चुनौती को स्वदेश ने स्वीकार किया है। ध्येय निष्ठ पत्रकारिता का युग शुरू है। व्यवसायिक पत्रकारिता के दिन लद गए। साथ ही उन्होंने कहा कि पत्रकारिता यानी ऐसी पत्रकारिता होनी चाहिए जिसमें सदैव ”भारत ये रहना चाहिए”।