मोदी के राज में आजकल मुश्किल में है स्मृति ईरानी, जानिए वो असली वजह
भारतीय जनता पार्टी में स्मृति ईरानी साल 2014 से ही प्रभावी भूमिका में रही हैं। बिना किसी जनाधार के उनको बड़े-बड़े मंत्रालय मिलने लगे। उन पर तमाम आरोप भी लगे लेकिन उनका कद कहीं से कम नहीं हुआ। हालांकि अब वक्त बदल रहा है। स्मृति ईरानी का रुतबा अब भाजपा में कम होने लगा है। आइए जानते हैं उनका रुतबा क्यों भाजपा में कम होने लगा है।
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केन्द्र में सरकार बनते ही मिल गया था बड़ा मंत्रालय
साल 2014 में मोदी सरकार जैसे ही केन्द्र में बनी, स्मृति ईरानी को अहम मंत्रालय दे दिया गया था। उनको मानव संसाधन जैसे बड़ा मंत्रालय मिला था। हालांकि उनकी खुद की पढ़ाई पर ही कांग्रेस और अन्य विरोधियों ने सवाल उठा दिये थे। उनका कहना था कि जो खुद 12वीं पास है, वो उच्च शिक्षा से जुड़ा इतना अहम मंत्रालय कैसे संभाल लेगी। इस पर बहुत बड़ा विवाद हुआ था।
विवाद बढ़ा तो हटा लिया था मंत्रालय
स्मृति ईरानी का विवाद बढ़ता देखकर मोदी सरकार बैकफुट पर आ गई थी। कुछ दिनों बाद उनसे मानव संसाधन मंत्रालय ले लिया गया था। इसके बाद उनको कपड़ा मंत्रालय दे दिया गया था। कद घटने को स्मृति ईरानी की विरोधी पार्टियों ने अपनी जीत के तौर पर लिया था। सोशल मीडिया ने भी केन्द्र सरकार के इस कदम की जमकर सराहना की थी और फैसले को सही बताया था।
अचानक दे दिया गया सूचना मंत्रालय जैसा अहम विभाग
स्मृति ईरानी के पास कपड़ा मंत्रालय जैसा सामान्य मंत्रालय था। हालांकि एक बार फिर उनकी किस्मत ने पलटी मारी और उनको एक बड़ा मंत्रालय दे दिया गया। ये मंत्रालय था सूचना एवं प्रसारण। इस मंत्रालय के मिलने के बाद स्मृति ईरानी का रुतबा भारतीय जनता पार्टी में एक बार फिर से बढ़ने लगा था। लेकिन स्मृति ने अति उत्साह में कुछ ऐसे फैसले किये जो उनके लिए घातक साबित हुए।
मीडिया पर लगाम लगाने का देखा सपना तो लगा झटका
जैसे ही स्मृति को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मिला उन्होंने कई विवादित फैसले लेने शुरू कर दिये। अति उत्साह में औऱ राजनीति की कच्ची खिलाड़ी स्मृति का प्रसार भारती के अध्यक्ष से नियुक्तियों पर विवाद हो गया था। इसके बाद गुस्से में उन्होंने प्रसार भारती का फंड ही रुकवा दिया था जबकि ये एक स्वायत्तशासी संस्था है। इस फैसले पर उनकी खूब किरकिरी औऱ विरोध हुआ।
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पत्रकारों को सजा देने का बनाने लगी नियम, पीएम को करना पड़ा हस्तक्षेप
स्मृति ईरानी ने अति उत्साह में एक और बड़ा विवादित फैसला ले लिया। उन्होंने पत्रकारों को सजा देने का नियम बनाने की सोची। उन्होंने फेक न्यूज पर नियमावली तैयार करने के आदेश दे दिये जिसमें पत्रकारों को सजा देने तक का नियम था। इस नियमावली ने हड़कंप मचा दिया। पत्रकारों की नाराजगी को देखते हुए खुद प्रधानमंत्री मोदी को पहली बार उनके फैसले को बदलना पड़ा। इसने उनकी खूब जगहंसाई करवाई।
राष्ट्रपति की जगह खुद देने लगी पुरस्कार
सबसे ताजा विवाद राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार को लेकर आया। राष्ट्रपति ने सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए एक घंटा देने का नियम बनाया है। कुल 130 पुरस्कार बांटे जाने थे। स्मृति ने बस 11 पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों और बाकी खुद देने का फैसला कर लिया। इससे कलाकार भी नाराज हो गये और उन्होंने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया। राष्ट्रपति भवन तक से नाराजगी जताई गई। इस फैसले के बाद तो स्मृति का ग्राफ पूरा गिर गया।
अब बचा है बस कपड़ा मंत्रालय
स्मृति ईरानी के एक के बाद एक अपरिपक्व फैसले और तानाशाही रवैया उनके लिए आत्मघाती साबित होता जा रहा है। भाजपा भी जानती है कि स्मृति का कोई जानाधार नहीं है और चुनावों में उनका कोई उपयोग नहीं होगा। इस वजह से अब धीरे-धीरे स्मृति को साइड लाइन किया जा रहा है।
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