कैंसर के मरीज को डिप्रेशन है तो बढ़ जाएगी परेशानी
आजकल की भागदौड़ और तनाव भरी जिंदगी में हर तीसरा आदमी अवसाद का शिकार हो जाता जा रहा है। अवसाद और कैंसर दोनों ही ऐसी बीमारियां हैं जिसकी चपेट में आने वाला व्यक्ति बहुत कठिन और मुश्किल जीवन जीता है। एक रिसर्च में सामने आया है कि जब कोई व्यक्ति कैंसर से पीड़ित होता है और अवसाद से भी ग्रस्त होता है तो उसकी परेशान बढ़ने के ज्यादा चांस रहते हैं। अधिकतर मामलों में अवसाद से गंभीर रूप से पीड़ित मरीज भी इलाज से बेहतर हो सकते हैं। इस रोग के लिए हुई गहन शोधों से इस रोग से ग्रसित लोगों के इलाज के लिए अनेक औषधियां, साइकोथेरेपी और इलाज के अन्य तरीके ईजाद हुए हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ लुइसविले स्कूल ऑफ मेडिसिन में हाल ही में हुई एक नई रिसर्च में साफ हुआ है कि अगर कोई कैंसर रोगी चार साल तक जीवन जीने वाला है तो डिप्रेशन के कारण वह केवल दो साल ही जी पाता है। ये एक ऐसी सच्चाई है जिसे सुनने में भले ही आपको यकीन ना आए लेकिन ये बात रिसर्च में कही गई है। शोध में साफ हुआ है कि सिर और गर्दन के कैंसर पीड़ितों में डिप्रेशन के लक्षण भी मिलते हैं, जिससे उनके सामने चिकित्सीय दुष्प्रभाव का सामना करने, धूम्रपान छोड़ने, पर्याप्त पोषण या नींद की आदतों को सही रखने की चुनौती खड़ी हो जाती है। इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने कुछ सिर और गर्दन के कैंसर से पीड़ित 134 मरीजों का आकलन किया है, जिन्होंने अपने इलाज के दौरान डिप्रेशन के लक्षणों की जानकारी दी थी।
डिप्रेशन के लक्षण
डिप्रेशन एक मनोवैज्ञानिक असंतुलन है। आमतौर पर लोग डिप्रेशन को आमतौर पर रहने वाली उदासी ही मानते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। उदासी में जहां व्यक्ति कुछ समय बाद सामान्य हो जाता है, वहीं डिप्रेशन में यही उदासी काफी लंबे समय तक और गहरी बनी रहती है। यह उदासी हर जगह उसके साथ रहती है। इसका असर उसके काम पर भी पड़ता है। डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति की रुचि किसी काम में नहीं रहती।
यहां तक कि वह काम जो कभी उसे सबसे ज्यादा पसंद होता था, उस काम को करने का भी उसका मन नहीं करता।अपने वर्तमान और भविष्य को लेकर भी वह काफी उदास और नाउम्मीद रहता है। अवसादग्रस्त व्यक्ति की नींद और भूख भी बिगड़ जाती है।