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इण्डिया गेट का इतिहास और अमर जवान ज्योति

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अमर जवान ज्योति ( अमर योद्धाओं की लौ ) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उन भारत के सैनिकों के लिए जिन्होंने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में अपनी जान गंवाई, का सम्मान करने के लिए बनाया गया
अमर जवान ज्योति काले संगमरमर से बना है और एक बंदूक और चोटी पर एक सैनिक की टोपी है. अमर जवान ज्योति इंडिया गेट के बगल में स्थित है. ये उन सैनिकों को याद करने के लिए बना था जिनकी भारत-पाक युद्ध में मृत्यु हो गई थी. तब से यह अभी तक जल रहा है.
1971 से अमर जवान ज्योति लगातार जल रही है.1971 से पाकिस्तान से युद्ध के बाद अमर जवान ज्योति जली.काफी समय से LPG से अमर जवान ज्योति जलती रही, अब PNG से जलती है.कस्तूरबा गांधी मार्ग से इंडिया गेट तक 500 मीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछी है.26 जनवरी और 15 अगस्त को अमर जवान ज्योति पर सभी चारों ज्योति जलती है.आम दिनों में सिर्फ एक ज्योति जलती है.26 जनवरी पर देश के पीएम परेड से पहले अमर जवान ज्योति पर पहुंच शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं.

यमुना नदी के किनारे स्थित दिल्‍ली शहर भारत की राजधानी है जो प्राचीन और गतिशील इतिहास के साथ एक चमकदार आधुनिक शहर है। इस शहर में बहुपक्षीय संस्‍कृति है जो पूरे राष्‍ट्र का एक लघु ब्रह्मान्‍ड कहा जा सकता है। इस शहर में एक साथ दो अनोखे अनुभव होते हैं, नई दिल्‍ली अपनी चौड़ी सड़कों और ऊंची इमारतों के साथ एक समकालीन शहर होने का अनुभव कराता है जबकि पुरानी दिल्‍ली की सड़कों पर चलते हुए आप एक पुराने युग का नजारा ले सकते हैं, जहां तंग गलियां और पुरानी हवेलियां देखाई देती हैं। दिल्‍ली में हजारों पुराने ऐतिहासिक स्‍मारक और धार्मिक महत्‍व के स्‍थान हैं।

शहर के महत्‍वपूर्ण स्‍मारक

इंडिया गेट 80,000 से अधिक भारतीय सैनिकों की याद में निर्मित किया गया था जिन्‍होंने प्रथम विश्‍वयुद्ध में वीरगति पाई थी। यह स्‍मारक 42 मीटर ऊंची आर्च से सज्जित है और इसे प्रसिद्ध वास्‍तुकार एडविन ल्‍यूटियन्‍स ने डिजाइन किया था। इंडिया गेट को पहले अखिल भारतीय युद्ध स्‍मृति के नाम से जाना जाता था। इंडिया गेट की डिजाइन इसके फ्रांसीसी प्रतिरूप स्‍मारक आर्क – डी – ट्रायोम्‍फ के समान है।
यह इमारत लाल पत्‍थर से बनी हैं जो एक विशाल ढांचे के मंच पर खड़ी है। इसके आर्च के ऊपर दोनों ओर इंडिया लिखा है। इसके दीवारों पर 70,000 से अधिक भारतीय सैनिकों के नाम शिल्पित किए गए हैं, जिनकी याद में इसे बनाया गया है। इसके शीर्ष पर उथला गोलाकार बाउलनुमा आकार है जिसे विशेष अवसरों पर जलते हुए तेल से भरने के लिए बनाया गया था।

इंडिया गेट के बेस पर एक अन्‍य स्‍मारक

अमर जवान ज्‍योति है, जिसे स्‍वतंत्रता के बाद जोड़ा गया था। यहां निरंतर एक ज्‍वाला जलती है जो उन अंजान सैनिकों की याद में है जिन्‍होंने इस राष्‍ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।

इसके आस पास हरे भरे मैदान, बच्‍चों का उद्यान और प्रसिद्ध बोट क्‍लब इसे एक उपयुक्‍त पिकनिक स्‍थल बनाते हैं। इंडिया गेट के फव्‍वारे के पास बहती शाम की ठण्डी हवा ढेर सारे दर्शकों को यहां आकर्षित करती हैं। शाम के समय इंडिया गेट के चारों ओर लगी रोशनियों से इसे प्रकाशमान किया जाता है जिससे एक भव्‍य दृश्‍य बनता है। स्‍मारक के पास खड़े होकर राष्‍ट्रपति भवन का नज़ारा लिया जा सकता है। सुंदरतापूर्वक रोशनी से भरे हुए इस स्‍मारक के पीछे काला होता आकाश इसे एक यादगार पृष्‍ठभूमि प्रदान करता है। दिन के प्रकाश में भी इंडिया गेट और राष्‍ट्रपति भवन के बीच एक मनोहारी दृश्‍य दिखाई देता है।

हर वर्ष 26 जनवरी को इंडिया गेट गणतंत्र दिवस की परेड का गवाह बनता है जहां आधुनिकतम रक्षा प्रौद्योगिकी के उन्‍नयन का प्रदर्शन किया जाता है। यहां आयोजित की जाने वाली परेड भारत देश की रंगीन और विविध सांस्‍कृतिक विरासत की झलक भी दिखाती है, जिसमें देश भर से आए हुए कलाकार इस अवसर पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

26 जनवरी 1972 को (23 वा भारतीय गणतंत्र दिवस) इंडिया गाँधी ने अधिकारिक रूप से इस स्मारक का उद्घाटन किया था।

1972 से हर साल गणतंत्र दिवस के दिन (गणतंत्र दिवस की परेड से पहले) देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, एयर स्टाफ के मुख्य, नवल स्टाफ के मुख्य, आर्मी स्टाफ के मुख्य और सभी मुख्य अतिथि अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि भी चढाते है, ताकि युद्ध में मारे गए सैनिको को वे श्रद्धांजलि अर्पण कर सके।

अमर जवान ज्योति नयी दिल्ली के राजपथ पर इंडिया गेट के निचे बनी हुई है। इस स्मारक पर संगमरमर का आसन बना हुआ है, जिसपर स्वर्ण अक्षरों में “अमर जवान” लिखा हुआ है और स्मारक के शीर्ष पर L1A1 आत्म-लोडिंग राइफल भी लगी हुई है, जिसके बैरल पर किसी अज्ञात सैनिक का हेलमेट लटका हुआ है।

1971 से इसके एक कलश में लगातार आग जल रही है। इसकी देखरेख करने वाली इंसान की जिम्मेदारी यही है की वह इस आग को बुझने ना दे।

1971 से 2006 तक आग जलती रहने के लिए एलपीजी का उपयोग किया गया और 2006 के बाद से CNG का उपयोग किया जाने लगा। सालभर में चार में से केवल एक ही कलश साल भर जलता रहता है।

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ही चारो कलशो को एकसाथ जलाया (प्रज्वलित करना) जाता है। अमर जवान ज्योति को आर्मी, वायु सेना और जल सेना तीनो सम्मान की नजर से देखते है।

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