जाने #MeToo शुरुआत कब हुई और इसका चलन कब से शुरू हुआ
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इस सिलसिले के दस साल बाद बाद 2017 में एक बार फिर ये शब्द ख़बरों में तब आया जब हॉलीवुड अभिनेत्री एलीसा मिलानो ने खुलासा किया कि हॉलीवुड के बड़े निर्माता हार्वे वीन्सटीन ने उनका और तमाम अन्य अभिनेत्रियों का उत्पीड़न किया.
एलिसा मिलानो ने 16 अक्टूबर 2017 को ट्विटर पर सभी से अपील की अगर वे भी उत्पीड़न की शिकार हैं तो #MeToo के साथ खुलकर अपनी बात कहें . उसके बाद यह अभियान एक आंदोलन की शक्ल में सामने आया और कई सम्मानित महिलाओं ने खुलासा किया की उनके साथ भी उत्पीडन हुआ है और यहीं से मी-टू कैम्पैन जिंदा हो गया.
भारत में इस अभियान की गूंज पूर्व अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के माध्यम से फिल्म जगत और फिर पत्रकारिता तक में भी सुनाई दे रही है।सोशल मीडिया ऐसी लड़कियों के किस्से से भरा हुआ है जो अतीत में घटे अपने उत्पीड़न के किस्से को पूरी दुनिया के सामने रख रही हैं |सोशल मीडिया पर #MeToo के नाम से शुरू हुआ यह कैम्पेन अब एक आंदोलन की शक्ल ले चुका है. अपने पैरों पर मजबूती से खडी होने की कोशिश करती भारतीय महिलाओं के खुलासों ने सभी को चौंका दिया है?भारतीय संदर्भ में यह एक ऐसी मूक क्रान्ति आकार ले रही है जो सोशल मीडिया के सहारे परवान चढ़ रही है . कई बड़े लोगों ने ख़ुद पर लगे आरोपों पर माफी भी मांगी है पर कुछ लोग अब भी चुप्पी बनाए हुए हैं. मी टू अभियान का एक पक्ष यह भी है कि सोशल मीडिया पर आधी आबादी अपनी बात मुखरता से रख सकती है .
वैसे भी देश की महिलाओं के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी कोई आरामदायक अनुभव नहीं है . मी टू अभियान को मिल रहा इतना समर्थन बता रहा है कि देश में महिलाओं का उत्पीडन कितनी बड़ी संख्या में हो रहा है . सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर भी महिलायें सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं जहाँ पुरुषों के मुकाबले महिलायें ज्यादा ट्रोल की जाती हैं पिछले साल क्रिकेटर मिताली राज ,अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ,सोनम कपूर और तापसी पुन्नू को ट्रोल किया गया |ये वो महिलायें हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के बूते सारी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है फिर भी इनके कपड़ों और व्यकतिगत जीवन को लेकर इन्हें ट्रोल किया गया |जब समाज की इन नामचीन महिलाओं की ऐसी स्थिति है तो देश की आम महिलाओं की सोशल मीडिया में क्या स्थिति होगी . तथ्य यह भी है कि आम पुरुषों के मुकाबले महिलायें सोशल मीडिया पर उतनी स्वछन्द स्थिति का लुत्फ़ नहीं उठा सकतीं और अक्सर इस की कीमत अश्लीन संदेशों और फोटो के रूप में चुकानी पड़ती है | यही मानसिकता आगे चलकर महिलाओं के उत्पीडन की जिम्मेदार बनती है .
लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी अलग है जब वे खुल कर खुद ही अपने साथ हुए अपराध की कहानी दुनिया के सामने ला रही हैं .लेकिन इस अभियान का एक अन्य पहलू भी है वह यह कि किन मामलों को #MeToo माना जाए और किन मामलों को नहीं. मी टू अभियान की शुरुआत सिर्फ़ उत्पीड़न से शुरू हुई थी इसे दूसरी बातों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए पर ऐसा हो नहीं रहा है . जिन लोगों के रिश्ते कामयाब नहीं रहे वो भी इसे #MeToo में ला रहे हैं. इससे जिन लोगों के साथ वाकई उत्पीड़न हुआ है उनकी कहानियां छिप जाएंगी. एक लड़की जानती है कि कब कौन सिर्फ़ मज़ाक कर रहा है और कब उत्पीड़न कर रहा है. अगर एक लड़की ना कह रही है तो आदमी को रुकना होगा. अगर एक लड़की कह रही है कि उसे ये नहीं पसंद तो आदमी को रुकना होगा. अगर लड़की की ना के बाद लड़का आगे बढ़ रहा है तो ये उत्पीड़न है.हमें यह भी समझना होगा कि इस अभियान के तहत बलात्कारी के लिए भी वही सज़ा और कमेंट पास करने वालों के लिए भी वही सज़़ा यह धारणा उचित नहीं हो सकती है . कमेन्ट पास करने वाले लोगों को समझाया जा सकता है शायद उन्हें पता ही नहीं हो कि वो जो कर रहे हैं वो समाज के लिए ठीक नहीं है | हो सकता है एक बार चेतावनी मिलने के बाद वो सुधर जाएँ पर बलात्कार की माफी नहीं दी जा सकती है ऐसे लोगों की सभ्य समाज में कोई जगह हो ही नहीं सकती .ये स्त्री को इंसान नहीं वस्तु समझते हैं |
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