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गीता ज्ञान -अध्याय 7 शलोक 18-21

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हरे कृष्ण। भगवान श्री कृष्ण ने भक्तों की 4 श्रेणी बताई। ज्ञानी भक्त को भगवान अपने सबसे प्रिय भक्त की संज्ञा देते हैं। तो क्या बाकी श्रेणी के भक्त भगवान को प्रिय नहीं है या भगवान से दूर हैं। ऐसा नहीं है भगवान को तो सबसे प्रेम है लेकिन ज्ञानी भक्त शास्त्रों के बताए मार्ग पर चलते हुए हमेशा परमार्थ के लिये ही कर्म करतें हैँ। उनसे किसी प्रकार के पाप कर्म की अपेक्षा नहीं की जा सकती। स्वामी तुलसीदास के शब्दों में

“पर हित सरिस धर्म नहीं भाई,
पर पीड़ा सम नहीं अघमाई “

दूसरी श्रेणी के भक्त भी परहित में कर्म करते हैं, पाप कर्म से दूर रहते हैं, प्रभु का भजन भी करते हैं लेकिन उनके कर्म सकामकर्म हैं। पहले ख़ुद का भला, फिर हो सके तो दूसरे का भला। इसलिये पापकर्म नहीं करते हुए भी भगवान को उतने प्रिय नहीं हैं जितने ज्ञानी भक्त।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मनुष्य जीवन मिलने पर और भक्ति मार्ग पर चलने से मोक्ष प्राप्ति या परमानन्द की प्राप्ति निश्चित है। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है। इस पर संदेह करना तो ऐसा ही है जैसे किसी ने आपको खाने का निमन्त्रण दिया, आप पहुँच गये, पत्तल दोना आ गया फिर भी आप संदेह करें कि खाना मिलेगा या नहीं।
मनुष्य जन्म पाकर शास्त्रों में वर्णित कर्तव्य कर्म करते हुए भक्ति मार्ग पर चलते हुए परमानन्द प्राप्ति निश्चित है।

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