metoo को लेकर बुरे फंसे विदेश मंत्री एम जे अकबर, महिला पत्रकार द वायर ने दुखद अनुभव काे किया शेयर
नई दिल्ली : मी टू कैपन के तहत महिलाअाें के खिलाफ अपराधाें के खुलासे में विदेश मंत्री एम जे अकबर के खिलाफ 6 महिला पत्रकाराें द्वारा उत्पीड़न अाैर दुर्व्यहार के आराेप लगे है, दूसरी अाेर फाेर्स मैगजीन की एक्सक्यूटिव एडिटर गजाला वहाब ने द वायर पाेर्टल पर एमजे अकबर काे लेकर एेसे खुलासे किए हैं कि जिसे सुनकर हर किसी के राेंगटे खड़े जाएं।
महिला पत्रकार द वायर पर दुखद अनुभव काे बया किया हैं अाैर लिखा हैं कि जैसे ही मी टू अांदाेलन भारत में शुरू हुअा, मैने 6 अक्तूबर काे ट्वीट किया कि मुझे इस बात इंताजर हैं जब उसके लिए @mjakbar काे लेकर बाढ़ का दरावाज खुला जाएगा। जल्द ही मेरे दाेस्त अाैर एशियन एज जहां एमजे अकबर संपादक थे जब मैंने 1994 में इंटर्न के ताैर पर ज्वाइन किया था, की पुराने सहयाेगी मुझ तक पहुंच गए उन्हाेंने कहा कि तुम अपनी अकबर स्टाैरी काे क्याें नहीं लिखती हाे। लेकिन तब इस बात काे लेकर निश्चित नहीं थी, क्या दाे दशकाें बाद उसे लिखा किसी भी रूप में उचित हाेगा लेकिन जब संदेशाें के जरिए दबाव बढ़ने लगा ताे मैंने साेच लिया था।
जिसके बाद मैंने वीकेंड में उन डरावने छह महीनाें का अपने दिमाग अनुभव महसूस किया, कुछ एेसा इस तरह था जिसे मैंने अपने दिमाग के बहूत दूर एक काेने बंद कर रखा था। लेकिन मेरे लिए दहशत से कम नहीं था, वाे मेरे लिए राेंगटे खड़े देने वाला एक सच हैं। किसी सच्चाई छुपाना भी ताे सबसे बड़ा गुनाह हैं, कुछ पल के लिए मेरी अांखे गीली हाे गई लेकिन मैंने खुद काे बताया कि मैं एक पीड़ित के ताैर पर नहीं जानी जाऊंगी। उस वक्त जब 1989 मेें स्कूल में ही थी कि मेरे पिता ने अकबर के रायट्स आफ्टर की एक काॅपी भेट की, तक बहुत कम समय में याना सिर्फ दाे दिनाें में किताब के हर एक पन्नें खंगाल चुकी थी। इन किताबाें के जरिए अकबर परिचित हाे चुके थे, जिसके बाद मेरी इच्छी फैशन में बदल गयी फिर मैंने अपना फाेकस कभी ढीला नही किया। स्कूल के बाद जर्नलिज्म के बैचलर काेर्स में मैंने दाखिला ले लिया अाैर नाैकरी के लिए 1994 में मैं एशियन एज के दिल्ली स्थित दफ्तर पहुंच गई तब मैं इस बात से पूरी तरह सहमत की मुझे यहां लाने का काम नियति के किया हैं जिससे इस पेशे के सबसे अच्छे लाेगाें से सीख सकूं।
मैंने ये भी सुना हैं कि लाेग एशियन ए के दिल्ली दफ्तर काे अकबर कहकर बुलाते हैं, वहां पुरुषाें के मुकाबले युवा महिलाएं ज्यादा थीं, अाैर दफ्तर के गपशप में अक्सर उनकी सब एडिटराें अाैर रिपाेर्टराें के साथ के अफेयर सुनाए जाते थे। कहा जाता था कि एशियन एज के हर रिजनल दफ्तर में उनकी एक-एक गर्लफ्रेंड हैं, मैं इन सब दफ्तर की संस्कृति समझ इस बाजू में रख दिया करती थी। मैं उनके ध्यान से दूर हाशिये पर थी अाैकर किसी के कभी तरह से प्रभावित नहीं थी। मेरे एशियन एज में काम कारने के तीसरे साल दफ्तर में कल्चर ने घर पर हमला बोल दिया उनकी नजरें मुझ पर आ पड़ीं, और इसके साथ ही मेरा डरावना दौर शुरू हो गया। मेरी डेस्क बिल्कुल उनकी केबिन के सामने शिफ्ट कर दी गयी। सीधी स्थिति में बिल्कुल उनकी डेस्क के विपरीत. इस तरह से जिससे उनके रूम का दरवाजा अगर थोड़ा भी खुलता तो हमारे चेहरे एक दूसरे के सामने होते।
वो अपने डेस्क पर बैठ जाते और हर समय मुझे देखते रहते थे अक्सर ‘एशियन एज’ के इंट्रानेट नेटवर्क पर गंदे-गंदे संदेश भेजते रहते, उसके बाद मेरी असहाय स्थिति को देखते हुए उसका साहस और बढ़ गया उसने बातचीत के लिए मुझे अपनी केबिन (जिसका दरवाजा वो हमेशा बंद कर देता था) में बुलाना शुरू कर दिया। जिसमें ज्यादातर बातें बिल्कुल निजी होती थीं जैसे मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि और मैं कैसे काम कर रही हूं और अपने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर दिल्ली में रह रही हूं। कई बार वो मुझे अपने बिल्कुल सामने बैठा लिया करता था जब वो अपना साप्ताहिक स्तंभ लिख रहा होता था, इसके पीछे विचार ये था कि उसकी केबिन के आखिरी में दूर रखी ट्राइपोड पर बड़ी डिक्शनरी से शब्दों को देखने की जरूरत होगी। तो खुद पैदल चलकर जाने की जगह वो मुझसे कहेगा।
न केवल दरवाजा बंद था बल्कि उसके (अकबर के) पिछले हिस्से ने भी उसे ब्लॉक कर रखा था, आतंक के उन कुछ क्षणों में सभी तरह के विचार मेरे दिमाग में दौड़े। आखिर में उसने मुझे छोड़ दिया. इस पूरे दौरान उसकी धूर्ततापूर्ण मुस्कान कभी उसके चेहरे से नहीं गयी, मैं उसके केबिन से बाहर निकलकर चीखने और आंखों को साफ करने के लिए शौचालय में भागी। इस आतंक और हिंसा ने मुझे बिल्कुल अंदर से परेशान कर दिया. मैंने खुद को समझाया कि ये फिर नहीं होगा और मेरे प्रतिरोध ने उसे बता दिया था कि मैं उसकी गर्लफ्रेंडों में एक नहीं थी, लेकिन अभी मेरे डरावने सपने की सिर्फ शुरुआत भर हुई थी।
दूसरे दिन फिर उसने मुझे शाम काे अपने केबिन में बुलाया जिसके बाद मैंने भी दरवाजा खटखटाया अाैर प्रवेश कर गयी, इस दाैरान वाे दरवाजे के करीब ही था अाैर कुछ प्रतिक्रिया दे पाती उससे पहले ही उसने दवारा कर बंद कर मुझे कैद कर लिया। तब दरवाजे अाैर उसके शरीर के बीच फंस चुकी थी। मैंने धीरे से बाहर निकलने की काेशिश ताे उसने मुझे पकड़ लिया अाैर किस करने लिए करीब बढ़ने लगा था।
इसी तरह मेरा पूरा जीवन मेरी अांखाें के सामने ही गुजर गया, मैं परिवार में पहली शख्स थी जाे अागरा से दिल्ली पढ़ने के लिए चली आयी थी। जिसके बाद काम करने के लिए पिछले तीन सालाें में मैंने घर में बहुत सारी लड़ाइयां भी थी, जिससे दिल्ली में रहने अाैर काम करने योग्य बन चुकी थी मेरे परिवार में महिलाअाें ने केवल पढ़ाई की थी कभी काम नहीं किया था।
हमेशा छाेटे शहराे में व्यवसायी परिवाराे में लड़कियां एरेंज मैरेज करने पर मजबूर हाेती हैं, एेसे में मैंने पितृसत्ता के खिलाफ संघर्ष किया था। मैंने अपने खुद के पिता से पैसे लेने से इंकास कर दिया था, क्याेंकि मैं अपने बल बूते पर पूरा करना चाहती थी। मैं एक सफल प्रतिष्ठित जर्नलिस्ट बनना चाहती थी, मैं काम छाेड़कर लूजर की तरह घर नहीं लाैटना चाहती थी। मेरी एक सहयाेगी चटर्जी मेरा पीठा करते पार्किंग में पहुंच गयी अाैर उसने मेरी अांखाें में अांसू के साथ केबिन से बाहर अाते मुझे देख लिया था, वाे कुछ समय के लिए पास बैंठी रही अाैर सुझाव दिया कि तुम इसके बारे सीमा मुस्तफा काे क्याें नही बताती शायद वाे अकबर से बात कर सकें एक बार अगर वाे जान जाते हैं कि सिमा मुस्तफा जानती हैं। 4 आसान से सवालों के जवाब देकर जीतें 400 रुपये– यहां क्लिक करें।
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