centered image />

नीली नसों को न करें, नज़र अंदाज़

0 608
Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now

आजकल जैसे-जैसे लोग जागरूक हो रहे हैं, वैसे-वैसे लोगों में टांंगों में उभरने वाली नीले रंग की मकड़ीनुमा नसों को लेकर चिन्ता बढ़ रही है। जिस रफ्तार से हम लोग आरामतलबी व विलासितापूर्ण जीवनशैली को अपना रहे हैं, उसी रफ्तार से हमारी टांंगें वेरीकोस वेन्स की शिकार हो रही हैं। शुरुआती दिनों में हम लोग स्वभावत: इसको नकारते हैं, पर जब तकलीफ ज्यादा बढ़ जाती है तोे इधर उधर परामर्श लेना शुरू कर देते हैं। इस तरह के इलाज का अन्ततः परिणाम टांंगों में काला रंग व लाइलाज घाव के रूप में होता है वेरीकोस वेंस के सबसे ज्यादा शिकार दुकानदार व महिलायें होती हैं।

कम्प्यूटर के सामने व आफिस में घंटों बैठने वाले लोग, पांच सितारा होटलों में काम कर रहे लोग, लंबे समय तक लगातार खड़े रहने वाले वेरीकोस वेन्स के प्रकोप से बच नहीं पाते हैं। ट्रैफिक पुलिस मैन, प्रयोगशालाओं में कार्यरत वैज्ञानिक, न्यायपालिका के सदस्य व वकील भी वेरीकोस वेन्स से अछूते नही हैं। शिक्षक समुदाय में भी यह समस्या तेज़ी से फैल रही है।

कैसे पहचानें

अगर टांग या पैर में मकड़ीनुमा उभरी हुई नीले रंग की नसें त्वचा पर दिख रही हैं या काले रंग के निशान व काले रंग के चकत्ते या बिन्दियां दिखायी पड़ रही हैं तो सचेत हो जाएं। यह वैरिकोस वेन्स के लक्षण हैं। अगर थोड़ा चलने के बाद आपके पैरों में सूजन या थकान या हल्का दर्द महसूस होने लगे तो आप समझ जाइये कि आप वेरिकोस वेन्स के शिकार होने लगे हैं। चलने के बाद टांंगों में थोड़ा लाली व उभरी हुई नीले रंग की नसें भी इसके लक्षण हैं।
क्यों हो जाती है यह समस्या?

आरामतलबी वाले ऐसे लोग जो चलना-फिरना या सैर करना पसंद नहीं करते, वे इस समस्या के शिकार हो जाते हैं। दरअसल टांंगों की मांसपेशियों को ऑक्सीजन सप्लाई करने के बाद खून ऑक्सीजन रहित व गन्दा हो जाता है। यह खून अब तभी दोबारा से सप्लाई करने लायक बनेगा जब पुनः इसमें ऑक्सीजन डाली जाये। इसके लिये ज़रूरी है कि पैर में इकट्ठा हुआ यह गन्दा खून दिल के ज़रिये फेफड़े तक पहुंचे।

फेफड़े में फिर से ऑक्सीजन प्राप्त करके सर्कुलेशन में आये और आर्टरी के ज़रिये फिर से पैरों को शुद्ध रक्त पहुंचे। अगर किसी भी कारण से यह प्रक्रिया रुक जाएगी तो सोयी हुई वेन्स, गन्दे खून से भरना शुरू हो जायेंगी और फूलने के कारण खाल के नीचे उभरी हुई मकड़ी के जाले की तरह दिखने लगेगी। यही वेरिकोस वेन्स की शुरुआत है।
कहां जायें?
अगर आपको लगता है कि आपकी टांगों में वेरिकोस वेन्स की शुरुआत हो चुकी है तो तुरन्त किसी वैस्कुलर सर्जन से परामर्श लें।

(डॉ. पाण्डेय नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के

कार्डियोथोरेसिक एवं वेस्कुलर सर्जरी विभाग में वरिष्ठ सर्जन हैं। )

सही इलाज क्या है?

रोज़ सुबह व शाम एक-एक घंटे पार्क में टहलें।
पैरों को कुर्सी से एक घंटे से ज्यादा लटका कर नहीं बैठें और न ही एक घंटे से ज्यादा लगातार खड़े रहें।
वज़न को नियंत्रण में रखें, ज्यादा है तो घटाएं।
चलते वक्त एक विशेष किस्म की क्रमित दबाव वाली जुराबों को पहनें।
हर दो महीने में वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श करें।
अगर वैरिकोस वेन्स विकसित हो जाती हैं या पैरों पर काले निशान व चकत्ते उभर आते हैं, सूजन व लाली बनी रहती है या फिर घाव उभरने लगे हों तो सर्जरी या लेज़र या आर.एफ.ए. तकनीक का सहारा लेें।

सर्जरी व लेसर तकनीक में फर्क

वेरिकोस वेन्स को टांग से बाहर निकालने का काम सर्जरी का है और टांग के अन्दर ही अन्दर खत्म कर देने का काम लेज़र तकनीक का है। दोनों ही तकनीकों के अपने -अपने फायदे हैं।

लेज़र से फायदे

इस तकनीक में मरीज़ को बेहोश नहीं करना पड़ता। खाल में कट नहीं लगाने पड़ते और न ही टांके कटवाने की ज़रूरत पड़ती है। एक दिन में ही मरीज़ घर जा सकता है।

आरएफए उपचार की नई तकनीक

यह तकनीक आजकल बड़ी लोकप्रिय हो रही है। इसमें कोई सर्जरी नहीं करनी होती और न ही टांगों की खाल में कोई कट लगाना पड़ता है। मात्र चौबीस घंटे में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। आरएफए उपचार के बाद मरीज अगले दिन से अपने आफिस या काम पर जाना शुरू कर देता है। यह तकनीक लेज़र की तुलना में थोड़ा बेहतर है।

Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now
Ads
Ads
Leave A Reply

Your email address will not be published.