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क्या आप जानते है सफलता और धन, के बारे

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सफलता और धन अकेले नहीं आता वह अपने साथ अभिमान को लेकर भी आती है और यही अभिमान हमारे दुखों का कारण बन जाता है। ऐसे ही असफलता भी अकेले नही आती, वह भी अपने साथ निराशा को लेकर आती है और निराशा प्रगति पथ में एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर देती है। यद्यपि योग शब्द बहुत ही व्यापक है।

तथापि दुख कटु वचन और अपमान सहने की क्षमता का विकास तथा सुख प्रशंसा और सम्मान पचाने की सामर्थ्य से बढ़कर गृहस्थ धर्म में कोई दूसरा योग नहीं है।

माना कि सर्दी बहुत ज्यादा है मगर सर्दी को कोसने से भला फायदा भी क्या होगा? फायदा तो इसमें है कि हम गर्म कपड़े पहन लें इससे सर्दी का एहसास भी कम होगा। अकारण सर्दी को कोसने से भी बचेंगे। यह आपके जीवन को सुगम बनाने के लिए योग ही तो है।

अतः हर स्थिति का मुस्कुराकर सामना करने की क्षमता, किसी भी स्थिति को अच्छी या बुरी न कहकर समभाव में रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर लगातार आगे बढ़ना । यही तो गीता का योग है।

शास्त्रों में धन की तीन गतियां बताई गई हैं। पहली उपभोग, दूसरी उपयोग और तीसरी नाश। धन से जितना आप चाहें सुख के साधनों को अर्जित कर लो। बाकी बचे धन को सृजन कार्यों में सद्कार्यों में, अच्छे कार्यों में लगाओ। अगर आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तो समझ लेना फिर आपका धन नाश को प्राप्त होने वाला है।

धन का दुरूपयोग ही तो धन का नाश है। और धन का अनुपयोग भी उसका नाश ही है। दुनिया आपको इसलिए याद नही करती कि आपके पास बड़ा धन है अपितु इसलिए याद करती है कि आपके पास बड़ा मन है और आप सिर्फ़ अर्जन नही करते आवश्यकता पड़ने पर विसर्जन भी करते हैं।

धन के साथ एक बड़ा विरोधाभास और है कि जब-जब आप धन को संचित करने मे लगे रहते हो तब तब समाज में आपका मूल्य भी घटता जाता है। और जब-जब आपने इसे अच्छे कार्यों में लगाने का काम किया तब तब समाज में आपको बहुत मूल्यवान समझा जाता है।

अतः धन का संचय आपके मूल्य को घटा देता है और धन का सदुपयोग आपके मूल्य को बढ़ा देता है।

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