लापरवाही ना करे टाइफाइड के लक्षण पहचानकर तुरंत करें बचाव के घरेलु इलाज जरुर देखे
टायफाइड (आंतरिक ज्वर) क्यों होता है – आंतरिक ज्वर (टायफाइड ) के जीवाणु किसी रोगी व्यक्ति से या दूषित जल व खाद्य-पदार्थों के साथ मिलकर स्वस्थ व्यक्तियों तक पहुंचकर उन्हें रोगी बनाते हैं. विशेषकर किशोर और युवा वर्ग इस रोग से पीडित होता है.जीवाणु शरीर में पहुंचकर आंत्रों मेँ बिषक्रमण करके आंत्रिक ज्वर की उत्पत्ति करते हैं. जीवाणुओं के विषक्रमण से आंत्रों मे जख्म बन जाते हैंऐसी स्थिति मे रोगो के मल के साथ रक्तस्राव भी होने लगता है अतिसार की अवस्था मे रोगी को अधिक हानि होने की संभावना रहती है.आंन्निक ज्वर दो-तीन सप्ताह की अवधि मेँ नष्ट हो जाता है, लेकिन ऐसी स्थिति में रोगी की उचित चिकित्सा होनी चाहिए आंन्निक ज्वर के चलते धोडी सी लापरवाही से रोगी की स्थिति अधिक खराब हो सकती है.
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- मुनक्का को बीच से चीरकर उसमें काला नमक लगाकर, हत्का सा सेंककर खाने से बहुत लाभ होता है. आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार मुनक्का से अग्रेत्रिक ज्वर के जीवाणु भी नष्ट होते हैं अधिक मात्रा में मुनक्का नहीं खिलाए, क्योकि अधिक मुनक्का खाने से अतिसार हो सकता है
- गिलोय का रस 5 ग्राम थोड़े-से मधु के साथ मिलाकर चटाने से टायफाइड मे बहुत लाभ होता है. गिलोय का काड़ा भी मधु मिलाकर पिला सकते हैं. अजमोद का चूर्ण 3 ग्राम मधु के साथ सुबह-शाम चाटने से रोग में बहुत लाभ होता है.
- मुनक्का, वासा, हरड़ 3-3 ग्राम मात्रा मे लेकर 300 ग्राम जल मे काड़ा बनाकर उसमे मधु और मिसरी मिलाकर रोगी को पिलाने से आंत्रिक ज्वर मे लाभ होता है.
- काली तुलसी, बन तुलसी और पोदीना 3-3 ग्राम मात्रा मे रस निकालकर रोगी को 3 ग्राम मात्रा दिन मेँ दो-तीन बार पिलाने से लाभ होता है
.5. टायफाइड होने पर रोगी के सिर पर ‘मृगराज तेल की पट्टियाँ रखकर तथा ठंडे जल की थैली रखने से बेचैनी और उष्णता नष्ट होती है
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