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बेसहारा दिव्यांग ठगन मरकाम ने कठिन परिश्रम से बदली तकदीर

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रायपुर, 8 दिसंबर दुनिया में ऐसे कई दिव्यांग हैं, जिन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बना ली है। इन्होंने कभी हौसला नहीं खोया और सफलता के मुकाम पर पहुंचकर औरों के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है। ऐसे ही एक उदाहरण छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला के विकासखण्ड छुईखदान ग्राम मुंडाटोला की ठगन मरकाम हैं। उन्होंने दिव्यांगता को कभी जीवन में बाधक नहीं बनने दिया और कठिन परिश्रम से अपनी तकदीर को बदला है।

दिव्यांग ठगन मरकाम ने मुंडाटोला ग्राम पंचायत में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में मेट बनकर न सिर्फ योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया बल्कि वे स्वयं सशक्त हुईं। मरकाम ने अपने जीवन की शानदार नई शुरूआत की है। ठगन मरकाम अपने काम से काफी खुश हैं और कहती हैं कि अगर व्यक्ति चाह ले तो सफलता में दिव्यांगता बाधक नहीं हो सकती है।

उल्लेखनीय है कि माता-पिता के गुजरने के बाद गांव के बड़े-बुर्जुगों को ही अपना अभिभावक मानकर मनरेगा के जरिये गांव के लिए कुछ कर गुजरने का हौसला रखने वाली वह आज सबके लिए आदर्श बन गई हैं। करीब 35 वर्षीया ठगन मरकाम एक पैर से दिव्यांग हैं और जनवरी 2021 से गांव मुंडाटोला में महिला मेट की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं। मेट बनने के बाद उन्होंने गांव में नया तालाब निर्माण, विनय धुर्वे के खेत में भूमि सुधार कार्य एवं श्यामलाल के खेत में कूप निर्माण का कार्य करवाया है। उनकी सक्रियता से योजना के तहत खुले कामों में महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़कर 50 प्रतिशत पर पहुंच गई है। महात्मा गांधी नरेगा में वर्ष 2019-20 में जहां महिलाओं के द्वारा सृजित मानव दिवस रोजगार का प्रतिशत 42.36 था, वह वर्ष 2020-21 में बढ़कर 50.86 प्रतिशत हो गया। गांव में महिलाओं के बीच अपने सरल व्यवहार को लेकर लोकप्रिय ठगन ने अपनी लगनशीलता के बलबूते चालू वित्तीय वर्ष में भी महिलाओं की भागीदारी को 50 प्रतिशत बरकरार रखा है। इस साल नवम्बर की समाप्ति तक गांव में कुल रोजगार प्राप्त 615 श्रमिकों में से 310 महिला श्रमिकों को छह हजार, 802 मानव दिवस का रोजगार मिल चुका है। मनरेगा मेट ठगन का अतीत कठिन परिश्रम और संघर्षों से भरा रहा है। मनरेगा मजदूर से मनरेगा मेट बनने का सफर उनके लिए आसान नहीं था। माता-पिता के स्वर्गवास होने और बहनों के विवाह के उपरांत वह परिवार में अकेली हो गई थीं। एक पैर से दिव्यांग होने के कारण पंचायत से उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार काम मिलता था। अपने अतीत के संघर्षों के बारे में ठगन मरकाम कहती हैं कि उनके पास लगभग डेढ़ एकड़ की पुश्तैनी कृषि भूमि है, जिसे वे अधिया में देकर कृषि कार्य कराती हैं। जीवन-यापन के सीमित साधनों के कारण उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में ग्राम रोजगार सहायक सरिता धुर्वे उनके लिए नवा बिहान (नई सुबह) बनकर आयीं और उन्हें महात्मा गांधी नरेगा में महिला मेट के रूप में काम करने की सलाह दी। यह उनकी सलाह का ही परिणाम है कि ठगन गांव में आज मनरेगा मेट के रूप में सम्मानपूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन कर पा रही हैं। मनरेगा से मिले पारिश्रमिक से उन्होंने अपने लिए एक सिलाई मशीन खरीद ली है, जिसका उपयोग वे अपनी आजीविका समृद्धि के लिए कर रही हैं।

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