Bollywood : इन मशहूर फिल्मों कंपनियों के नाम और प्रतीकों का क्या है राज, चलिए जानते है
Bollywood : इंडियन इंडस्ट्री में कई बड़े प्रोडक्शन हाउस है जिनकी पहचान उनके नाम और उनके चिन्ह की वजह से। चाहे वो यश राज हो या धरमा प्रोडक्शन हो या दीपिका के प्रोडक्शन हाउस का नाम ‘का प्रोडक्शन्स’ क्यों है? आई जानते क्या है इसकी कहानी। बॉलीवुड और हॉलीवुड के नामचीन प्रोडक्शन हाउस के ‘लोगो’ और फिल्म कंपनियों के नाम की कहानी। किसी प्रोडक्शन हाउस की फिल्म, फिल्म कंपनी का नाम और ‘लोगो’ यानी प्रतीक चिन्ह उसकी पहचान हाती है।
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करण जौहर की ‘धर्मा प्रॉडक्शन्स’ ने ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी खुशी कभी गम’ और ‘कल हो न हो’ जैसी फिल्में बनाईं। अपनी आने वाली फिल्म ‘भूत- पार्ट वन: द हॉन्टेड शिप’ के प्रमोशन के लिए ‘धर्मा प्रोडक्शन्स’ ने अपने ‘लोगो’ में ही कुछ बदलाव किए।
उन्होंने ‘लोगो’ के रंग को बदला और उसके पीछे आने वाले संगीत को डरावना बना दिया। करण जौहर ने अपनी कंपनी ‘धर्मा प्रोडक्शंस’ के ट्विटर अकाउंट का ‘लोगो’ काला कर दिया है और कवर स्टोरी में लिखा है- ‘डार्क टाइम्स बिगिन नाओ।’ फिल्म में मुख्य भूमिका विक्की कौशल और भूमि पेडनेकर निभा रहे हैं।
इसी के साथ दीपिका पादुकोण ‘छपाक’ फिल्म के साथ निर्माता बन गईं। दीपिका के प्रोडक्शन हाउस का नाम है ‘का प्रोडक्शन्स।’ दीपिका कहती हैं, ” ‘का’ का मतलब है अंतर आत्मा। आपका एक ऐसा हिस्सा जो आपके जाने के बाद भी इस दुनिया में रह जाता है। शायद मैं भी यही चाहती हूँ कि मेरे जाने के बाद मेरा काम यहीं रहे और मैं ऐसा काम करूं कि लोग मुझे याद रखें।”
फिल्म को बनाने में जितना पैसा लगा, ‘छपाक’ ने उससे ज़्यादा कमाई की है और लोगों को फिल्म पसंद आई। एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी से प्रेरित फिल्म ‘छपाक’ का निर्देशन मेघना गुलज़ार ने किया है। राजश्री फिल्म्स के सूरज बड़जात्या ने ‘हम आपके हैं कौन’, ‘मैंने प्यार किया’ और ‘हम साथ साथ हैं’ जैसी पारिवारिक फिल्में बनाई हैं।
राजश्री प्रोडकशन्स की शुरुआत करने वाले ताराचंद बड़जात्या के बेटे कमल बड़जात्या के मुताबिक, “जब नाम रखने की बात आई तो शुरुआती नाम था ‘राज-कमल’। मेरा नाम ‘कमल’ और मेरे भाई का नाम ‘राज’। लेकिन फिर मेरी बहन ‘राजश्री’ के नाम पर प्रोडक्शन का नाम तय हुआ।” पर जब राजश्री की फिल्में शुरू हाती हैं तो सरस्वती मां की प्रतिमा आती है। इसके पीछे का क्या राज है? इस पर कमल ने कहा, “पिताजी सरस्वती मां को बहुत मानते थे और कहते थे कि जो फिल्में बनेंगी वो ऐसी होंगी कि पूरा परिवार देख सके।”
अंग्रेज़ी फिल्मों के प्रोडक्शन कंपनी के लोगो के पीछे भी कमाल की कहानी और सोच लगी है। फिल्म समीक्षक अर्णब बैनर्जी ने बताया, ” ‘एम. जी. एम’ के ‘लोगो’ में एक शेर है। वो बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में बनाया गया था। इस कंपनी के मुख्य प्रचारक हार्वर्ड डाइटस ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसके चिन्ह यानी शुभंकर से प्रेरित होकर एम. जी. एम के लोगो में एक शेर को लाए। तब मूक फिल्में बनती थीं इसलिए शेर की दहाड़ तब तक नहीं सुनाई दी जब तक कि फिल्मों में आवाज नहीं आई, यानी साल 1928 तक।” कुछ ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने सालों तक अपनी पहचान नहीं बदली और कुछ जो वक़्त के साथ बदलते रहे हैं। कुछ प्रोडक्शन हाउस अब तक फिल्में बना रहे हैं- जैसे यशराज और राजश्री। कुछ वक़्त के अंधेरों में गुम होकर बंद हो गए। मुंबई के चेम्बूर में स्थित ‘आरके फिल्म्स’ की आख़िरी फिल्म आई थी साल 1999 में जिसका नाम था ‘आ अब लौट चलें।’