कहानी: उज्जवल भविष्य
माँ की आँखों की रोशनी कम होते-होते आखिर बिल्कुल समाप्त हो गई। किसी डाक्टर का इलाज काम नहीं आया। अब वह बच्चों का सहारा ले कर चलती और उठती बैठती थी। पिता जी दुखी थे और तीनों बच्चे उदास। एक दिन पिंकी, जो आठवीं कक्षा में पढ़ती थी, छोटे भाईयों राजू और सोनू से बोली- ‘ऐसा लगता है कि पिता जी हिम्मत हार कर निराश हो गये हैं। लेकिन मुझे अब भी विश्वास है कि माँ की आँखे ठीक हो सकती है। अंकल वर्मा जी से सलाह लेनी चाहिये।’ वर्मा जी उनके पड़ोसी थे। वे बहुत ही नेक दिल और दूसरों के हमदर्द थे। वह अक्सर माँ और पिता जी के साथ आँखों के इलाज के लिए जाया करते थे।
तीनों बच्चे वर्मा जी के घर में पहुँचे। उनसे आशा भरे स्वर में पूछा- ‘अंकल जी, क्या हमारी माँ की रोशनी लौट सकती है?’ वर्मा जी कुछ क्षण तीनों बच्चों के चेहरे को गंभीरता पूर्वक निहारते रहने के बाद बोले- ‘उनकी आँखे तो अवश्य ही ठीक हो सकती हैं बच्चो! नेत्र-विशेषज्ञों का कहना है कि उनका इलाज केवल डाक्टर भाटिया के बस की बात है। डाक्टर भाटिया की फीस पाँच हज़ार रुपये है और एक गरीब आदमी के पास इस महंगाई के ज़माने में इतना पैसा जमा कब होता है? पैसों के अभाव में न जाने कितने लोगों को कष्ट भरी ज़िंदगी जीने को मज़बूर होना पड़ता है।’ उन्होंने ठंडी सांस भरी। बच्चे घर लौट आए, निराश हो कर। लेकिन पिंकी बहुत अकलमंद लड़की थी, वे निराशा में भी आशा की किरण ढूंढने वाली लड़की थी। वह सोचने लगी, क्या माँ को केवल पैसों की खातिर कष्ट भरी ज़िंदगी जीने को मजबूर होना पड़ेगा? नहीं! नहीं!! उनकी आँखों में आंसू आ गये। पर ज़्यादा देर तक वह इस स्थिति में नहीं रहा। निराशा के अंधकार में से रोशनी की एक आशा भरी किरण उसने ढूंढ निकाली। उसकी आँखों में आंसुओं के स्थान पर अब चमक थी और मस्तिष्क में उथल-पुथल की जगह एक योजना थी। यह योजना उसने राजू और सोनू को बताई तो वह खुश हो कर बोले- ‘हां, इस तरीके से माँ का इलाज संभव है।’ पिंकी ने उन्हें खबरदार किया- ‘लेकिन सावधान! माँ और पिता जी को कानों कान खबर नहीं होनी चाहिए।’
पिता जी का वेतन बहुत कम था, केवल एक हज़ार रुपये! पाँच सौ रुपया घर के राशन पर ही खर्च हो जाता था और बाकी के पाँच सौ रुपयों में ऊपरी खर्च बड़ी मुश्किल से पूरे होते थे। वेतन मिलते ही पिता जी सब से पहले राशन वाले को पाँच सौ रुपया देते थे लेकिन राशन घर लाने की ज़िम्मेदारी पिंकी और राजू की थी। दोनों राशन रिक्शा पर लदवा कर घर ले आते।
इस बार पिंकी और राजू राशन लेने गये तो उन्होंने अपनी व्यथा-कथा दुकानदार को सुनाई। सुन कर दुकानदार का मन भी भीग गया। माँ के प्रति बच्चों का इतना प्यार देखकर उसे अपना बचपन और माँ की याद आ गई। वह बच्चों की योजना में हिस्सेदार बन गया।
उस दिन के बाद बच्चों ने अपनी खुराक आधी कर दी। सोमवार का व्रत रखना भी शुरु कर दिया। लेकिन माँ और पिता जी को इस बात की खबर नहीं होने दी कि राशन अब केवल दो सौ रुपये का आ रहा है और बाकी के तीन सौ रुपये राशन वाले दुकानदार के पास जमा हो रहे थे। बच्चों ने बड़े साहस से इस स्थिति का सामना करना शुरु कर दिया। इस तरह एक वर्ष और आठ महीने बीत गये। राशन वाले ने पाँच हज़ार रुपये पिंकी के हाथ में थमाते हुए कहा- ‘तुम्हारे जैसे बच्चे हर माँ-बाप के भाग्य में हों्’ बच्चे खुशी-खुशी रुपये लेकर अपने पड़ोसी वर्मा जी के पास पहुँचे और उन्हें सारी कहानी सुना कर रुपये उन्हें दिखाये। वर्मा जी की आँखों में आंसू आ गये। भरपेट भोजन न मिलने का कष्ट सहना आसान नहीं था। पूरी खुराक न मिलने से उनके चेहरे मुरझाये हुए थे। नादान बच्चे! बेचारों को यह मालूम नहीं कि पाँच हज़ार के अलावा पाँच सौ रुपये और भी खर्च आयेंगे। नर्सिंग होम में मरीज की खुराक और देखभाल के लिए साथ गए लोगों के खाने पीने का खर्च। वर्मा जी की अपनी आर्थिक-स्थिति ठीक नहीं थी लेकिन उन्होंने बच्चों की मदद करने की ठानी। अपने पास से उन्होंने उन्हें चार सौ रुपये दिये।
शाम को पिता जी आये तो पिंकी ने पाँच हज़ार चार सौ रुपये उनकी हथेली पर रख कर सारे रहस्य से पर्दा उठा दिया। पिता जी ने भावुक होकर तीनों बच्चों को छाती से लगा लिया। उनकी आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। माँ भी साड़ी के पल्लू से आँखे पोछ रही थी। इतनी बड़ी तपस्या।
माँ को अगले दिन डाक्टर भाटिया के प्राइवेट अस्पताल में दाखिल करा दिया गया। आपरेशन के कुछ दिनों बाद आँखों से पट्टी खोली गई, तो माँ की नज़र सबसे पहले तीनों बच्चों पर पड़ी। पहले उन्हें धुंधला-धुंधला सा नज़र आया लेकिन कुछ देर बाद बिल्कुल साफ नज़र आने लगा। वह खुशी से चीख पड़ी- ‘मैं देख सकती हूँ बच्चो, मुझे एकदम साफ नज़र आ रहा है। मैं देख सकती हूँ, मैं देख सकती हूँ। आओ बच्चों! मेरी छाती से लग जाओ। तुम्हारी तपस्या सफल हो गई….।’ बच्चे दौड़ कर माँ की छाती से लग गये। पिता जी और वर्मा जी मंत्रमुग्ध से यह भावुक दृश्य देख रहे थे। कुछ देर बाद वर्मा जी ने आगे बढ़ कर बच्चों को अलग किया और बोले- ‘बच्चो! तुम्हारी कठोर तपस्या ने न केवल तुम्हारी माँ की दुनिया रोशन कर दी है, बल्कि इस बात की भी भविष्य वाणी कर दी है कि तुम जैसे आत्मविश्वासियों का भविष्य उज्जवल है। तुम्हें कभी निराशा का मुँह नहीं देखना पड़ेगा।