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जीवन की सफलता का आधार संतुलित ज्ञान

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सफल जीवन की कोई परिभाषा नहीं है। कैसा जीवन आनंदमय होता है, इसके संबंध में अनेक मत हैं। कोई यह नहीं कह सकता है कि जीवन के संबंध में उसका मत ही सबसे अच्छा और पूरा है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन अपने तरीके से जीता है। किसी का जीवन खुशहाल और आनंदमय होता है तो किसी का दुखदाई। कोई अत्यधिक अनुशासन और अधिक तप वाले जीवन को अच्छा कहता है तो कोई खाने पीने और मौज उडाने को आनंदप्रद मानता है। एक संतुलित और अनुशासन वाला जीवन ही संपूरण जीवन कहलाना चाहिए। महात्मा बुद्ध के मुताबिक भी ऐसा जीवन सबसे अच्छा है। गौतम बुद्ध से राजकुमार श्रोण ने दीक्षा ली और अत्यधिक कठोर अनुशासन और तप का जीवन गुजारने लगे। इससे उनका शरीर सुख गया। शरीर के नाम पर हड्डियों का ढांचा ही बचा था बुद्ध को लगा श्रोण की यह हालत उनकी कठोर तपस्या के कारण हुई है। उन्होंने श्रोण से कहा, मैंने सुना है तुम सितार बहुत अच्छा बजाते हो।

क्या मुझे सुना सकते हो ? श्रोण ने कहा, आप अचानक क्यों सितार सुनना चाहते हैं ? बुद्ध ने कहा, न केवल सुनना चाहता हूं, बल्कि सितार के बारे में जानना भी चाहता हूँ। मैंने सुना है यदि सितार के तार बहुत ढीले हों या बहुत कसे हुए हों तो उससे संगीत पैदा नहीं होता। श्रोण ने कहा, आपने बिल्कुल ठीक सुना है। यदि तार अत्यधिक कसे होंगे तो टूट जाएँगे और यदि अत्यधिक ढीले होंगे तो स्वर बिगड़ जाएँगे। बुद्ध मुस्कुराए और बोले, जो सितार के तार का नियम है, वही जीवन का भी नियम है। मध्य में रहो। न भोग की अति करो, न तप की। बुद्ध की प्रेरक बातें श्रोण को समझ में आ गई। अति सरवत्र वरजयते। संतुलन आवश्यक है। वेद में कहा गया है, जीवन का निरमाण और विनाश दोनों हमारे हाथों में है। निरमाण करने का बेहतर तरीका क्या हो, इसे जो जानता है उसका जीवन दूसरों के लिए प्रेरक बन जाता है।

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