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अश्लील फिल्मों में होने वाली 10 ऐसी बातें जो असल ज़िन्दगी के काम क्रिया में नहीं होती

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ज़्यादातर युवा काम क्रिया के बारे में बात करने में झिझकते है और उनके अभिभावक और स्कूल भी उन्हें इस विषय पर सही सलाह नहीं देते इसलिए हमारे युवा मदद के लिए इंटरनेट का सहारा लेते है। इंटरनेट किसी भी विषय के बारे में आपको जानकारी देता है लेकिन हाल ही की रिसर्च से पता लगा है की काम क्रिया के बारे में लोग सिर्फ जानकारी देने वाली साइट ही नहीं देखते बल्कि वह रेडट्यूब और अश्लील जैसी साइट पर जाते है। अश्लील फ़िल्में देखना कुछ गुनाह नहीं है लेकिन आपको उससे काम क्रिया के बारे में जानकारी लेना गलत है। हम आपको ऐसी अश्लील फिल्मों की 10 ऐसी बातों के बारे में बताते है जो असल ज़िन्दगी के काम क्रिया में नहीं होती:

1 विपरीत लिंग हमेशा काम क्रिया के बारे में सोचता रहे

अश्लील फ़िल्में हर किसी को सन्देश देती है कि इंसान जिस किसी से भी मिलते है वह काम क्रिया के ऑफर का इंतज़ार कर रहे होते है।जबकि ज़्यादातर लोग हर समय काम क्रिया के बारे में सोचते भी नहीं है।

2. महिला को बिना उकसाने से चरम आनंद मिल जाता है

महिला को क्लाइमेक्स तक पहुंचने के लिए उनके हॉट स्पॉट पर बार बार उकसाना पड़ता है। साधारण तौर पर एक महिला को चरम आनंद पाने में 20 मिनट का वक़्त लगता है। वही अश्लील फिल्मों में दिखते है कि कुछ मिंटो में ही महिला को आनंद मिल जाता है।

3. हर किसी को बट पसंद है

 

 अश्लील फिल्मों में दिखाया जाता है कि सभी महिलाओं को बट पसंद होता है और हम इसे बिना किसी चिकनाई के कर सकते है जबकि असल में बट खुद से चिकना नहीं होता और न ही यह स्त्री जननांग कि तरह उत्सुक होता है। बट काम क्रिया करने से पहले काफी तैयारी करनी पड़ती है।

4. ऐ टी एम  सही है

ऐ टी एम यानी एस टू माउथ मतलब नीचे से ऊपर अश्लील फिल्मों में एक कॉमन ट्रेंड है। अश्लील में दिखाए जाने वाली यह प्रैक्टिस सबसे घटिया होती है क्यूंकि यह बिलकुल अस्वस्थ होती है। इससे आप अपने साथी को स्वस्थ्य सम्बन्धी कई बीमारिया दे सकते है।

5. बाहर स्खलन करना ज़रूरी है

अश्लील फिल्मों में दिखाया जाता है कि आदमी आनंद पाते हुए अपने साथी के चेहरे, छाती या आसानी से पहुंचने वाली किसी भी जगह पर स्खलन करता है लेकिन असल ज़िन्दगी में शायद ही कोई चाहेगा कि उनके चेहरे पर कोई स्खलन करे।

6. जितनी कठिन पोजीशन होगी उतनी अच्छी काम क्रिया होगी

अश्लील फिल्मों में दो लोगों के बीच ऐसी काम क्रिया दिखाई जाती है जिसमे अलग अलग पोजीशन को अपनाया जाता है। असल में रुक रूककर उकसाया जाता है जिसका मतलब आप दुबारा से शुरू कर रहे है। मिशनरी पोजीशन इसलिए लोकप्रिय है क्यूंकि इसमें क्लाइटोरिस से कांटेक्ट होता है।

7. काम क्रिया नहीं होती

अश्लील फिल्मों में एक्शन एक दम शुरू हो जाता है या फिर 30 सेकंड कि काम क्रिया देखने को मिलती है लेकिन असल में काम क्रिया बहुत ज़रूरी होती है। यह एक खुश और स्वस्थ काम क्रिया के लिए बहुत ज़रूरी है।

8. महिला को देखना पसंद होता है

अश्लील फिल्मों में दिखाया जाता है कि महिला इंटरकोर्स के दौरान अपने अंगों को अच्छा देखकर जल्दी चरम आनंद लेती है। लेकिन असल ज़िन्दगी में ऐसा कुछ नहीं होता।

9. चरम आनंद की समानता आसान है

अश्लील फिल्मों में महिला को आनंद लेने के लिए हिलना नहीं पड़ता। हालाँकि असल ज़िन्दगी में महिला को एक बार क्लाइमेक्स मिलता है और वह अपने साथी से  आनंद महसूस करती है।

10. वह असल लोग हैं

अश्लील फ़िल्में सिर्फ एक एंटरटेनमेंट का साधन हैं इससे जानकारी लेने की गलती न करे।

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