महंगाई इतनी बढ़ गई है तो पारले-जी बिस्किट पांच रुपये में कैसे मिल सकता है? जानें यह गणित…
उन्होंने कहा कि पहले पारले-जी में 100 ग्राम के छोटे पैकेट हुआ करते थे। कुछ सालों बाद इसे घटाकर 92.5 ग्राम कर दिया गया।
पारले-जी बिस्कुट का स्वाद आज भी लोगों की जुबान पर है। भारत में यह सिर्फ बिस्कुट का ब्रांड नहीं है, बल्कि इससे जुड़ा एक इमोशन भी है।
जब भी पारले-जी बिस्कुट का जिक्र आता है तो हम अपने बचपन में वापस चले जाते हैं। पारले-जी बिस्कुट में समय के साथ कई बदलाव हुए हैं, लेकिन इसका स्वाद नहीं बदला है।
इसके साथ ही एक और चीज जो लंबे समय से नहीं बदली है वह है बिस्कुट के एक छोटे पैकेट की पारले-जी कीमत। अब यह बटुआ रु. लेकिन लंबे समय तक इसकी कीमत महज चार रुपये थी।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि लगातार बढ़ती महंगाई और कमोडिटी की कीमतों में बदलाव के बीच पारले-जी कंपनी ने 5 रुपये का रेट कैसे बरकरार रखा।
25 साल के लिए एक ही कीमत
25 साल तक Parle-G बिस्कुट के एक छोटे पैकेट की कीमत महज 4 रुपये थी। कंपनी ने इस कीमत को कैसे मैनेज किया, इसका पूरा गणित स्विगी के डिजाइन डायरेक्टर ने किया है
इसे सप्तर्षि प्रकाश ने समझाया है। प्रकाश ने लिंक्डइन पर लिखा कि, कभी सोचा, यह कैसे संभव है? इसके बाद उन्होंने अपना हिसाब-किताब सुनाया।
मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग
प्रकाश कहते हैं- ‘1994 में पारले-जी बिस्कुट के एक छोटे पैकेट की कीमत रु. कई साल बाद रेट में एक रुपए की बढ़ोतरी हुई और पैकेट की कीमत पांच रुपए आ गई।
1994 से 2021 तक पारले-जी के एक छोटे पैकेट की कीमत 4 रुपये ही रही। उन्होंने कहा कि पारले जी ने इतने बड़े पैमाने पर अपनी पहचान बनाने के लिए जबरदस्त मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाया.
पैकेट का आकार छोटा हो जाता है
मनोवैज्ञानिक तरीके के बारे में बताते हुए प्रकाश कहते हैं- ‘अब जब मैं छोटा पैकेट कहता हूं, तो आपके दिमाग में क्या आता है? एक पैकेट जो आपके हाथ में आराम से फिट हो जाए। एक पैकेट में मुट्ठी भर बिस्कुट होते हैं।
पारले इस तरीके को बखूबी समझते थे। इसलिए उन्होंने दाम बढ़ाने की बजाय लोगों के मन में अपने छोटे पैकेट का विचार रखा।
फिर धीरे-धीरे इसका आकार कम करने लगा। समय के साथ छोटे पैकेटों का आकार छोटा होता गया, लेकिन कीमतें नहीं बढ़ीं।
प्रकाशन ने कहा कि पहले पारले-जी में 100 ग्राम के छोटे पैकेट हुआ करते थे। कुछ सालों बाद इसे घटाकर 92.5 ग्राम कर दिया गया। फिर 88 ग्राम और आज पांच रुपये में मिलने वाले पारले-जी के एक छोटे से पैकेट का वजन 55 ग्राम है।
1994 के बाद से उन्होंने अपना 45 प्रतिशत वजन कम किया है। वह इस तकनीक को ग्रेसफुल डिग्रेडेशन बताते हैं और कहते हैं कि आलू के चिप्स, चॉकलेट और टूथपेस्ट बनाने वाली कंपनियां इसी तरह काम करती हैं।