centered image />

जनसेवा में बाधक न बने सत्तापक्ष-विपक्ष के बीच का मतभेदः राष्ट्रपति

0 127
Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्तापक्ष और विपक्ष के संबंधों की महत्ता का जिक्र करते हुए कहा कि विचारधारा में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन कोई भी मतभेद इतना बड़ा नहीं होना चाहिए कि वह जन सेवा के वास्तविक उद्देश्य में बाधा बने। उन्होंने सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को संयुक्त रुप से लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन और रक्षा करने की सलाह देते हुए कहा कि सत्ता-पक्ष और प्रतिपक्ष के सदस्यों में प्रतिस्पर्धा होना स्वाभाविक है, लेकिन यह प्रतिस्पर्धा बेहतर प्रतिनिधि बनने और जन-कल्याण के लिए बेहतर काम करने की होनी चाहिए। तभी इसे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा माना जाएगा। संसद में प्रतिस्पर्धा को प्रतिद्वंद्विता नहीं समझा जाना चाहिए ।

संसद के केंद्रीय कक्ष में संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि विपक्ष वास्तव में, लोकतंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। सच तो यह है कि प्रभावी विपक्ष के बिना लोकतंत्र निष्प्रभावी हो जाता है। सरकार और विपक्ष, अपने मतभेदों के बावजूद, नागरिकों के सर्वोत्तम हितों के लिए मिलकर काम करते रहें, यही अपेक्षा की जाती है।

उन्होंने आगे कहा कि हम सब लोग यह मानते हैं कि हमारी संसद ‘लोकतंत्र का मंदिर’ है। अतः हर सांसद की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वे लोकतंत्र के इस मंदिर में श्रद्धा की उसी भावना के साथ आचरण करें जिसके साथ वे अपने पूजा-गृहों और इबादत-गाहों में करते हैं।

कोविंद ने कहा कि हमारे संविधान में वे सभी उदात्त आदर्श समाहित हैं जिनके लिए विश्व के लोग भारत की ओर सम्मान और आशा भरी दृष्टि से देखते रहे हैं। “हम भारत के लोग”, इन शब्दों से आरम्भ होने वाले हमारे संविधान से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत का संविधान लोगों की आकांक्षाओं की सामूहिक अभिव्यक्ति है।

उन्होंने कहा कि संविधान सभा के सदस्यों ने जन प्रतिनिधि की हैसियत से, संविधान के प्रत्येक प्रावधान पर चर्चा और बहस की। वे साधारण लोग नहीं थे। उनमें से अनेक सदस्य कानून के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे, अनेक सदस्य अपने-अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित विद्वान थे और कुछ तो दार्शनिक भी थे।

राष्ट्रपति ने इस बात पर पर प्रसन्नता व्यक्त की कि संविधान सभा की चर्चाओं तथा संविधान के सुलेखित संस्करण और अद्यतन संस्करण को डिजिटल रुप में भी जारी कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह टेक्नॉलॉजी की सहायता से, ये सभी अमूल्य दस्तावेज़ सबके लिए सुलभ हो गए है।

कोविंद ने कहा कि हमारे देश में न केवल महिलाओं को आरम्भ से ही मताधिकार प्रदान किया गया बल्कि कई महिलाएं संविधान सभा की सदस्य थीं और उन्होंने संविधान के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम के कुछ विद्वान यह कहते थे कि भारत में वयस्क मताधिकार की व्यवस्था विफल हो जाएगी। परन्तु यह प्रयोग न केवल सफल रहा, अपितु समय के साथ और मजबूत हुआ है। यहां तक कि अन्य लोकतंत्रों ने भी इससे बहुत कुछ सीखा है।

हमारी आज़ादी के समय, राष्ट्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को यदि ध्यान में रखा जाए, तो ‘भारतीय लोकतंत्र’ को निस्संदेह मानव इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जा सकता है। इस उपलब्धि के लिए के लिए राष्ट्रपति ने संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता और जन-गण-मन की बुद्धिमत्ता को नमन किया।

Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now
Ads
Ads
Leave A Reply

Your email address will not be published.