एक सच्ची प्रेम कहानी: अनजान आदमी का सड़क पे मिलना बहुत सुहाना था
एक सच्ची प्रेम कहानी: उस दौरान मैं अपने ऑफिस की ओर जा रही थी की मुझे रास्ते में चलती एक गाडी ने हॉर्न बजा के अपनी मस्तानी आँखों से इशारा किया. मुझे लगा कि जैसे मैंने कोई गलती की हो ओर वो मुझे डांटने वाला हो लेकिन जब मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने मुस्कुरा के मुझे आँखों से इशारा किया. एक पल को ऐसे लगा की मानो इस इंसान को मैं कब से जानती हूँ.
सरकारी नौकरियां यहाँ देख सकते हैं :-
सरकारी नौकरी करने के लिए बंपर मौका 8वीं 10वीं 12वीं पास कर सकते हैं आवेदन
1000 से भी ज्यादा रेलवे की सभी नौकरियों की सही जानकारी पाने के लिए यहाँ क्लिक करें
थोड़ी दूर आगे चलते चलते वो मुझे ही फॉलो करता रहा मन में एक घबराहट थी पर पता नहीं क्यों अच्छा लग रहा था. अगर मैं पीछे रह जाती तोह वो मेरा इंतज़ार करता और अगर आगे निकल जाती तोह वो तेज़ से आता और मेरे साथ चलता. कभी भी लव एट फर्स्ट साइड पे विश्वास नहीं हुआ लेकिन वो दिन ही कुछ अजीब था. जब हमारे रास्ते एक दूसरे से अलग होने वाले थे तो आँखों ही आखों में हम दोनों ने एक दूसरे को अलविदा कहा और अगली मुलाकात को भगवान पे छोड़ दिया.
उस दिन के बाद से हर रोज़ अगर मैं पहले पहुँचती तो मैं उसका इंतज़ार करती और कभी वो पहले पहुँचता तो वो मेरा. दोनों ने साथ चलने का फैसला कर लिए था भले ही अलग अलग गाडी में लेकिन उसका साथ बहुत अच्छा लगता था.
तकरीबन एक महीने बाद उसने हिम्मत दिखाई और वो इस बार इंतज़ार भी कर रहा था और गाडी के बाहर वो भी खड़ा था. मुझे ये देख क बहुत दर लगा पर मन में एक बार बात करने की बहुत इच्छा थी. मैंने भी पहुंच के अपनी गाडी रोक के उससे बात की और उसने बहुत ही सलीखे से मुझसे मेरा नाम पूछा. मैंने उसको कांपते हुए अपना नाम ज़रूर बताया पर उससे उसका नाम नहीं पूछा फिर उसने मेरी हालत देख के मेरा फ़ोन लिया और उसमे अपना नंबर सेव कर दिया और कहा कि अगर आपको ठीक लगे और आपकी मंज़ूरी हो तो आप मुझे इस नंबर पे कॉल या मैसेज ज़रूर करियेगा अगर नहीं आया तोह मैं समझूंगा कि आप इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाना चाहती.
मैं बहुत दुविधा में थी. समझ में नहीं आया की क्या करू एक तरफ मन में डर था न जान न पहचान कैसे किसी अजनबी का विश्वास करू. बहुत सोचने के बाद मैंने अपनी ख़ास दोस्त से पूछा. उसने कहा क्या फरक पड़ता है अगर ठीक नहीं हुआ लड़का तो नंबर चेंज कर लियो. मुझे बहुत अजीब लगा बहुत दर लगा समझ में नहीं आ रहा था क्या करू. फिर मैंने हिम्मत की और अपने मन की सुनी और भगवन को कहा की मुझे रास्ता दिखाओ. फिर मेरे माता पिता ने मुझसे एक लड़के से मिलने को कहा जो वो मेरे लिए शादी के लिए ढूंढे रहे थे किसी मैट्रिमोनियल साइट से. दिल ने कहा जिस इंसान को तू जानती नहीं है उससे मिलने जा रही है और जिस इंसान को तू रोज़ देखती है जिसको तेरे फ़ोन की उम्मीद है उससे बात करने से तू डर रही है.
मैंने अपने दिल की सुनी और उसे शाम को फ़ोन किया समझ में नहीं आया क्या बोलू लेकिन उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी. उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें उम्मीद थी की मेरा फ़ोन आएगा और वो मुझसे दोस्ती करना चाहता है. हम तकरीबन रोज़ बात करते थे और धीरे धीरे एक दूसरे के बारे में जानने भी लग गए थे. हमें बात करते हुए तकरीबन 6 महीने हो गए थे लेकिन इस बीच में एक चीज़ बदली थी कि हम एक दूसरे का इंतज़ार नहीं करते थे क्यूंकि हम एक दूसरे को बता के निकलते थे और तकरीबन एक ही समय पे पहुंचते थे. एक दिन वो मुझसे मिलने की ज़िद कर बैठे थे लेकिन मैं इस बार किसी भी दुविधा में नहीं थी क्यूंकि मैं खुद उनसे मिलना चाहती थी.
हम दोनो पास ही के एक कैफ़े में मिले और बहत ही सलीखे से उन्होंने मेरे साथ शाम बितायी. ये देख के मन को तसल्ली थी की मैंने कुछ गलत नहीं किआ और मैंने सही इंसान पे विश्वास किया. और यही से हमारे प्यार की शुरुआत हुई हम अक्सर मिलते थे और एक दूसरे की ताकत बन कर एक दूसरे को आगे बढ़ने का एहसास दिलाते थे. यही देखते देखते मेरे माता पिता ने मेरे लिए एक लड़का देखा मैं उससे मिलना नहीं चाहती थी क्यूंकि हम एक दूसरे से प्यार करने लगे थे डर इस बात का था कि ये बात जानके मेरे घर वाले कैसे रियेक्ट करेंगे.
हम दोनों ने एक दूसरे से इस बारे में बात करी और उस लड़के ने बात ख़तम होते ही कहा की मेरे माता पिता तुम्हारे माता पिता से आ के हमारी शादी की बात करेंगे और क्यूंकि हमने कुछ गलत नहीं किया है हम नहीं डरेंगे उसकी हिम्मत देख के मुझे बहुत हिम्मत मिली और हम ने ऐसे ही किया उसके माता पिता को मैं बहुत पसंद आयी और मेरे माता पिता ने भी फैसला किया कि वो मेरी शादी उससे करेंगे
आज हमें 3 साल हो गए है और मुझे मेरे माता पिता से ज़्यादा प्यार करने वाले मेरे सास ससुर और मेरे पति है
ज़रूरी नहीं है के हर कोई हमारे लिए बुरा हो कुछ लोग भगवान के भेजे हुए हमारे लिए होते है.