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इस लड़की की एक लडके ने बचाई थी इज्जत, बाद में लड़के के साथ जो हुआ जानकर नहीं रुक पाएंगे आंसू

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एक कहावत है जिसका कोई नई उसका तो खुदा है यारों। आज की घटना कुछ इसी तरह की है। नेहा अग्रवाल अपने कालेज से घर आ रही थी किन्तु उसे आज थोड़ा ज्यादा समय हो गया था। देर होने का मुख्य कारण था कि वह अपनी सहेली के जन्म दिन की पार्टी में चली गई थी।

नेहा एक गरीब परिवार की लड़की थी। उसके पिता जी एक भट्ठे पर मुनीमी का काम करते थे। उस दिन नेहा को पता नहीं था कि उसे ज़रा सी देर कितनी भारी पड़ सकती है।

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शहर से गाँव तक का तीन किलोमीटर का रास्ता था। जिस पर दिन में तांगा चलते थे और कोई वाहन नहीं चलते थे और तांगा सात बजे के बाद चलना बंद हो जाते थे। नेहा को घर जाना था और इससे पहले भी कई बार रात में नेहा अकेले घर जा चुकी थी। उस दिन नेहा शहर से एक किलोमीटर ही निकली थी कि एक मोटरसाइकिल पर सवार तीन लड़कों ने उसे घेर लिया और उसे छेड़ने लगे।

A girl of this girl was saved with respect, later she could not stop knowing what happened to the boy

नेहा ने चिल्लाने की कोशिश की तो एक लड़के ने उसका मुंह दबा दिया और तीनों लड़के उसे पास में ही गन्ने के खेत में खींच ले गए। नेहा काफी रोती और रहमत की भीख मांगती रही किन्तु वह तीनो लड़के मानने को तैयार नहीं थे। उसी समय दीपक अग्रवाल भी उसी गाँव में अपने मामा के यहाँ जा रहा था।

जब उसने सड़क पर पड़ी मोटरसाइकिल देखी तो उसके कान खड़े हो गए। उसने इधर उधर देखा तो अचानक किसी लड़की की चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। दीपक अग्रवाल तुरंत गन्ने के खेत की तरफ गया और उसने जो नजारा देखा उसके होश उड़ गए। उसने देखा तीन लड़के एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश कर रहे थे।

दीपक अग्रवाल के पास तो कुछ नहीं था सिर्फ कपड़ों के बैग के । इस लिए उसने एक गन्ने का पौधा उखाड़ा और उन तीनों लड़कों को पीटने लगा। लड़कों ने जब अपने ऊपर हमला करते दीपक को देखा तो वो भी उस पर टूट पड़े। दीपक अकेला और वो तीन किन्तु दीपक ने हिम्मत नहीं हारी।

वह लड़ता रहा और मारता रहा तथा मार खाता रहा। अंत में एक लड़के ने दीपक के सिर पर कुछ जोरदार मार दिया जिससे दीपक के सिर से खून बहने लगा और दीपक बहीं गिर कर बेहोश हो गया। लड़कों ने समझा कि दीपक मर गया। इस लिए वो तीनों लड़के वहां से फरार हो गए। नेहा भी होश में नहीं थी किन्तु फिर भी वह खुद को सम्हालते हुए दीपक के पास आ गई। उसने दीपक को देखा तो वह बेहोश पड़ा था।

नेहा काफी चिल्लाई किन्तु उस समय उसकी आवाज कोई सुनने वाला नहीं था। नेता डर भी रही थी और दीपक को इस हाल में छोड़ना भी नहीं चाहती थी।

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नेहा ने दीपक का खून पोंछा और उसके पास बैठ कर अपनी किताबों से हवा करती रही। लगभग आधे घंटे बाद दीपक को होश आ गया। उसने अपनी यह हालत देखी तो वह हैरान था।

पास में बैठी नेहा ने उसे सब बताया। नेहा के सभी कपड़े फट गए थे। इस लिए दीपक ने उसे अपने कुछ कपड़े दिए जो उसकी बैग में थे। किसी तरह दोनों गाँव पहुंचे तो गाँव के सभी लोग उन लोगों की यह हालत देख हैरान रह गए। यह घटना है मध्य प्रदेश, के शहर इंदौर से कुछ दूर पर बसे गाँव लिम्बूदा की।

नेहा निम्बूदा के रहने वाले अशोक अग्रवाल की बेटी थी और इंदौर के एक कालेज में पढ़ती थी । दीपक भी झलारिया का रहने वाला था और अपने मामा सुखदेव अग्रवाल के यहाँ आ रहा था। दोनों बच्चों की हालत देख अशोक उन्हें तुरंत अस्पताल ले गया। दीपक और नेहा कुछ दिनों में ठीक हो गए।

कुछ दिन रहने के बाद दीपक अपने घर झलारिया आ गया लेकिन नेहा के दिल में अपने प्यार की छाप छोड़ आया था। इस घटना के तीन महीने बाद नेहा के पिता ने नेहा से शादी के लिए कहा तो नेहा ने दीपक से शादी करने के लिए कह दिया। हालांकि नेहा के पिता ने इस रिश्ते को पहले मना किया किन्तु जब नेहा ने कहा जब दीपक एक अजनबी इंसान के लिए अपनी जान पर खेल सकता है तो मैं तो जिन्दा हूँ वह मुझे कितना प्यार करेगा।

अशोक ने दीपक के मामा सुखदेव से बात की तो सुखदेव भी तैयार हो गया। दो महीने बाद दोनों की शादी करा दी गई। नेहा और दीपक आराम से रहने लगे। किन्तु जब नेहा 3 महीने की पेट से थी उसी समय एक दुर्घटना में दीपक की मौत हो गई। आज नेहा जी तो रही है किन्तु अपने लिए नहीं सिर्फ समय को काटने के लिए। शायद आज नेहा भी दुनिया में न होती अगर दीपक की आख़िरी निशानी उसके पेट में न होती।

यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है और इस घटना को हमारे ब्लॉग ईमेल पर राखी अग्रवाल ने भेजा है , जिन्होंने नेहा को अपनी फ्रेंड बताया है।

इस घटना के बारे में आपकी क्या राय है हमें कमेन्ट द्वारा बताएं आखिर भगवान उसी को क्यों बुला लेता है जो लोगों का मसीहा होता है।

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