centered image />

आखिर पूजा में स्त्री दाहिने तरफ ही क्यों बैठती है , जानें इसके पीछे की बड़ी वजह

0 2,504
Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now

आप जानते ही होंगे कि मौली स्त्री के बाएं हाथ कि कलाई में बांधने का नियम शास्त्रों में लिखा है ज्योतिषीय स्त्रीयों के बाएं हाथ की हस्त रेखाएं देखते हैं। वैद्य स्त्रीयों के बाएं हाथ की नाड़ी को छूकर उनका इलाज करते हैं ये सब बातें स्त्री को वामांगी होने का संकेत करतीं हैं परन्तु प्रश्न ये उठता है कि वामांगी कहलाने वाली स्त्री दाहिने कब बैठती है विवाह संस्कार एवं पूजन इत्यादि वैदिक कर्मकाण्ड कि श्रेणी में आता है उस समय स्त्री को पुरुष के दाहिने बिठाया जाता है

सप्तपदी हिन्दू धर्म में विवाह संस्कार एक महत्वपूर्ण अंग है

इसमें वर उत्तर दिशा में वधु को सात मन्त्रों के द्वारा सप्त मण्डलिकाओं में सात पदों तक साथ ले जाता है इस क्रिया के समय वधु भी दक्षिण पाद उठाकर पुनः वामपाद मण्डलिकाओं में रखतीं है विवाह के समय सप्तपदी क्रिया के बिना विवाह कर्म पक्का नहीं होता है अग्नि के चार परिक्रमाओं से यह कृत्य अलग है जिस विवाह में सप्तपदी होती है वह वैदिक विवाह का अभिन्न अंग हैं इसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता है सप्तपदी के बाद ही कन्या को वर के वाम अंग में बैठाया जाता है सप्तपदी होने तक वधु को दाहिने तरफ बैठाया जाता है क्योंकि वह बाहरी व्यक्ति जैसी स्थिति में होती है प्रतिज्ञाओं से बद्ध हो जाने के कारण पत्नी बनकर आत्मीय होने से उसे बाई ओर बिठाया जाता है इस प्रकार बाई ओर से आने के बाद पत्नी गृहस्थ जीवन की प्रमुख सुत्रधार बन जाती है और हस्तांतरण के कारण दाहिने ओर से वो बाई ओर आ जाती है इस प्रक्रिया को शास्त्र में आसन परिवर्तन के नाम से जाना जाता है शास्त्र में स्त्री को वाम अंग में बैठने के अवसर भी बताये गये है सिंन्दुरदान द्विरागमन के समय भोजन शयन व्रत सेवा के समय पत्नी हमेशा वामभाग में रहें इसके अलावा अभिषेक के समय आशिर्वाद के ग्रहण करते समय और ब्राह्मण के पांव धोते समय भी पत्नी को उत्तर दिशा में रहने को कहा गया है

उल्लेखनीय है कि जो धार्मिक कार्य पुरुष प्रधान होते हैं

जैसे विवाह, कन्यादान, यज्ञ, जातकर्म , नामकरण, अन्नप्राशन, निष्क्रमण आदि में पत्नी पुरुष के दाईं (दक्षिण) ओर रहती है जबकि स्त्री प्रधान कार्यों में वह पुरुष के वाम (बाई) अंग की तरफ बैठती है

महाभारत शांति पर्व के अनुसार पत्नी पति का शरीर ही है और उसके आधे भाग को अर्द्धांगिनी के रुप में वह पूरा करती है पुरुष का शरीर तब तक पूरा नहीं होता तब तक की उसके आधे अंग को नारी आकर नहीं भरती पैराणिक आख्यानों के अनुसार पुरुष का जन्म ब्रह्मा के दाहिने कंधे से और स्त्री का जन्म बाएं कंधे से हुआं है इसलिए स्त्री को वामांगी कहा जाता है और विवाह के बाद स्त्री को पुरुष के वाम भाग में प्रतिष्ठित किया जाता है

Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now
Ads
Ads
Leave A Reply

Your email address will not be published.