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रामायण : माता सीता के जन्म से जुड़ी इन दो पौराणिक कथाएं को ज़रूर पढ़ें

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उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने हाल ही में एक विवादित बयान दिया है। उनका कहना है कि भगवान राम की पत्नी और राजा जनक की बेटी सीता जी टेस्ट ट्यूब बेबी हो सकती हैं। मथुरा में हिंदी पत्रकारिता दिवस के एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ऐसा बयान दिया है। इसके अलावा टेक्नोलॉजी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि महाभारत में संजय और धृतराष्ट्र ने पहली बार लाइव टेलीकास्ट का प्रयोग किया था। कार्यक्रम में बात करते हुए उन्होंने कहा है कि उन्होंने नारद को पहला पत्रकार भी बताया। किन्तु इन सभी बयानों में से माता सीता के बारे में उन्होंने जो कहा वह बात मीडिया की सुर्खियाँ बटोर रही है और कई लोग इसपर विरोध भी जता रहे हैं।

राजा जनक की प्रथम पुत्री सीता को जानकी के नाम से भी जाना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता सीता को मां लक्ष्मी का अवतार माना गया है। उनका विवाह राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम से हुआ था। विवाह के बाद दोनों को 14 साल का वनवास भी झेलना पड़ा था। धार्मिक ग्रन्थ रामायण में माता सीता से जुड़ी कई सारी कथाएं दर्ज हैं किन्तु उनका जन्म कैसे हुआ था, आइए जानते हैं।

सीता जन्म की पहली पौराणिक कहानी

माता सीता के जन्म के संबंध में दो पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार मिथिला राज्य में भयंकर सूखा पड़ गया था। जिसे देख राजा जनक बेहद परेशान थे। तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और फिर यज्ञ की समाप्ति होने पर धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया।

राजा जन्म के ऋषि के सुझाव के अनुसार महान यज्ञ करवाया और अंत में धरती जोतने लगे। वे हल जोत ही रहे थे कि अचानक उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या दिखी। उन्होंने उस कन्या को उठाकर हाथों में लिया। कन्या का स्पर्श होते ही उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने उस कन्या को अपनी पुत्री बनाने का निर्णय लिया और उसे ‘सीता’ का नाम दिया।

सीता जन्म की दूसरी पौराणिक कहानी

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार माता सीता कोई और नहीं, बल्कि लंकापति रावण और उनकी पत्नी मंदोदरी की पुत्री थीं। यह कथा हैरान कर देने वाली है परंतु कई इतिहासकार इसे भी सत्य मानते हैं। इस पौराणिक कथा के अनुसार सीता जी वेदवती नाम की एक स्त्री का पुनर्जन्म थीं। वेदवती विष्णु जी की परमभक्त थी और वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी और ऐसा करने के लिए उसने कठोर तपस्या की।

कहा जाता है कि एक दिन रावण वहां से निकल रहा था जहां वेदवती तपस्या कर रही थी। उसकी सुंदरता देख रावण मोहित हो गया और वेदवती को अपने साथ चलने के लिए कहा। लेकिन वेदवती ने साफ इंकार कर दिया। यह देख रावण क्रोधित हो उठा। उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा। किन्तु रावण के स्पर्श करते ही वेदवती ने स्वयं को भस्म कर लिया। परंतु उससे पहले उसने रावण को यह श्राप दिया कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और उसकी ही मृत्यु का कारण बनेगी।

कहा जाता है कि कुछ समय के बाद रावण की पत्नी मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया। लेकिन वेदवती के श्राप के डर से रावण ने उस कन्या को स्वीकार नहीं किया और जन्म लेते ही उसे सागर में फेंक दिया। सागर की देवी वरुणी ने उस कन्या को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया। पृथ्वी की ही गोद में बसी इस कन्या को पिता के रूप में राजा जनक और सुनैना से मां का प्यार मिला।

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