तिथि के अनुसार करें श्राद्ध
हमारी भारतीय संस्कृति के हिसाब से पितृपक्ष में तर्पण व श्राद्ध करने से परिजनों को को पूर्वजों का आर्शीवाद और सुख प्राप्त होता है जिससे कि घर परिवार में में सुख-शान्ति व समृद्धि हमेशा बनी रहती है। हिन्दु शास्त्रों के अनुसार से जिस तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है, पितर पक्ष में उसी तिथि को उस मृतक का श्राद्ध किया जाता है।
उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के पिता की मृत्यु तृतीया को हो, तो पितर पक्ष में उस मृतक का श्राद्ध भी तृतीया को ही किया जाता है जबकि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु की तिथि ज्ञान न हो, तो ऐसे किसी भी मृतक का श्राद्ध अमावश्या को किया जाता है।
हालांकि यदि मृतक की मृत्यु तिथि ज्ञात हो, तो उस तिथि के अनुसार ही मृतक का श्राद्ध किया जाता है, जबकि तिथि ज्ञात न होने की स्थिति में अथवा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति का मृतक व्यक्ति के साथ सम्बंध के आधार पर भी श्राद्ध किया जा सकता है। विभिन्न तिथियों के अनुसार किस तिथि को किस सम्बंधी का श्राद्ध किया जा सकता है, इसकी जानकारी निम्नानुसार है:
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा
इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम माना गया है।
आश्विन कृष्ण पंचमी
इस तिथि को परिवार के उन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए, जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था में हो गई हो।
आश्विन कृष्ण नवमी
इस तिथि को माता व परिवार की अन्य महिलाओं के श्राद्ध के लिए उत्तम माना गया है।
आश्विन कृष्ण एकादशी व द्वादशी
इस तिथि को उन लोगों के श्राद्ध के लिए उत्तम माना गया है, जिन्होंने सन्यास ले लिया हो।
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी
इस तिथि को उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो।
आश्विन कृष्ण अमावस्या
इस तिथि को सर्व-पितृ अमावस्या भी कहा जाता है और इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
कौए और श्राद्ध
प्राचीन मान्यता के अनुसार पितर पक्ष में पूर्वजों की आत्माऐं धरती पर आती हैं क्योंकि उस समय चन्द्रमा, धरती के सबसे ज्यादा नजदीक होता है और पितर लोक को चन्द्रमा से ऊपर माना गया है। इसलिए जब चन्द्रमा, धरती के सबसे नजदीक होता है और ग्रहों की इस स्थिति में पितर लोक के पूर्वज, धरती पर रहने वाले अपने वंशजों के भी सर्वाधिक करीब होते हैं तथा कौओं के माध्यम से अपने वंशजों द्वारा अर्पित किए जाने वाले भोजन को ग्रहण करते हैं।
आश्चर्य की बात ये भी है कि यदि हम सामान्य परिस्थितियों में कौओं को भोजन करने के लिए आमंत्रित करें, तो वे नहीं आते, लेकिन पितरपक्ष में अक्सर कौओं को पितरों के नाम पर अर्पित किए जाने वाले श्राद्ध के भोजन को ग्रहण करते हुए देखा जा सकता है।
इसलिए पितर पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध के दौरान काफी अच्छा व स्वादिष्ट भोजन पकाया जाता है, क्योंकि मान्यता ये है कि इस स्वादिष्ट भोजन को व्यक्ति के पूर्वज ग्रहण करते हैं और संतुष्ट होने पर आशीर्वाद देते हैं, जिससे पूरे साल भर धन-धान्य व समृद्धि की वृद्धि होती है, जबकि श्राद्ध न करने वाले अथवा अस्वादिष्ट, रूखा-सूखा, बासी भोजन देने वाले व्यक्ति के पितर (पूर्वज) कुपित होकर श्राप देते हैं, जिससे घर में विभिन्न प्रकार के नुकसान, अशान्ति, अकाल मृत्यु व मानसिक उन्माद जैसी बिमारियां होती हैं तथा पूर्वजों का श्राप जन्म-कुण्डली में पितृ दोष योग के रूप में परिलक्षित होता है।
न करें कोई महत्वपूर्ण कार्य पितर पक्ष में
मान्यता ये है कि पितर पक्ष पूरी तरह से हमारे पूर्वजों का समय होता है और इस समय में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए, बल्कि केवल शान्तिपूर्ण तरीके से इस समय को ईश्वर के भजन कीर्तन आदि में व्यतीत करना चाहिए।
इस समय में कोई नया काम भी शुरू नहीं करना चाहिए, न ही कोई नया वहां, कपड़ा, जैसी चीज नहीं खरीदनी चाहिए। यहां तक कि इस समयावधि में किसी नए काम की प्लानिंग भी नहीं बनानी चाहिए। क्योंकि इस मौके में कोई मांगलिक कार्य जैसे कि शादी-विवाह आदि करते हैं, तो वह निश्चित रूप से अच्छा नहीं मन जाता है, अथवा अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पडता है। जबकि इस समयावधि में कोई सामान भी खरीदते हैं, तो उस सामान से दु:ख व नुकसान ही उठाना पडता है, बल्कि ये एक सत्य है कि इस श्राद्ध के समय में किये कार्य विफल होते हैं. यानी ये समय भाैतिक सुख-सुविधाओं के लिए किए जाने वाले किसी भी प्रयास के लिए पूरी तरह से प्रतिकूल होता है। इसलिए इस समयावधि को यथास्थिति में रहते हुए सरलता से व्यतीत करना ही बेहतर रहता है।