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सम्राट अशोक का इतिहास

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सम्राट अशोक. सम्राट अशोक को Generally Ashoka या फिर Ashoka the Great के नाम से भी जाना जाता  है। वे भारत के  संपन्न सम्राटो में से एक थे। किताब “outline of history” में samrat ashoka के बारे में , उनकी वीरता के किस्से के बारे में लिखा गया है । उनकी कहानी पुरे इतिहास में प्रसिद्ध है, वे एक लोक-प्रिय, इंसाफ, कृपालु और शक्तिशाली सम्राट थे । ashoka the great मौर्य राजवंश के एक भारतीय सम्राट थे जिनका शासन भारतीय उपमहाद्वीप पर सन 273 से 232 तक चला । उन्हें बौद्ध धर्म का भी प्रचार किया था। भारत का राष्ट्रीय चिह्न (National Symbols) ‘अशोक चक्र’ और शेरों की त्रिमूर्ति “अशोक स्तम्भ” भी अशोक महान की ही देन है।

सम्राट अशोक का जन्म

सम्राट अशोक का जन्म 304 साल पहले पटना के पाटलीपुत्र मे हुआ था । सम्राट अशोक सम्राट  बिन्दुसार और माँ कल्याणी के पुत्र थे । सम्राट अशोक की माँ कल्याणी चंपक नगर के एक बहुत ही गरीब परिवार  की बेटी थी।

सम्राट अशोक का बचपन
सम्राट अशोक को बचपन से ही शिकार करने का शौक था । जब वे थोड़े से बड़े हुए तभी से उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर साम्राज्य के कार्यो मे उनका हाथ बटाना शुरु कर दिया था । सम्राट अशोक कोई काम अपनी प्रजा का पूरा ख्याल रखते हुए करते थे। उनके इसी व्यवहार से उनकी प्रजा उन्हे बहुत ज्यादा पसंद करने लगी थी। पिता बिंदुसार की देहांत के पश्चात पाटलीपुत्र की राजगद्दी सम्राट अशोक के बड़े भ्राता शुशिम को मिलने वाली थी, लेकिन प्रजा ने अशोक को इस योग्य ज्यादा समझा , इसलिए उन्होंने अशोक को कम उम्र मे ही वहां का सम्राट घोषित कर दिया था। उनके राज्य में चोरी, डकैती होना पूरे तौर पर ही बंद हो गईं। उन्होंने अपने धर्म पर इतनी मेहनत कि की उनकी पूरी प्रजा ईमानदारी और सच्चाई के पथ पर चलने लगी।

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विवाह
जब सम्राट अशोक ने अवन्ती का शासन संभाला तो वे एक निपुण रजनीतिज्ञ के रूप मे सामने आए।  उसी टाइम सम्राट अशोक ने विदिशा की राजकुमारी से शादी की थी जिसका नाम शाक्य कुमारी था । शाक्य कुमारी दिखने मे बहुत हीं खुबशुरत थी। शाक्य कुमारी से शादी करने के बाद सम्राट अशोक के दो संतान महेंद्र और पुत्री संघमित्रा हुए।

सम्राट अशोक का भीषण कलिंग युद्ध
कलिंग पर विजय हांसिल करना चाहता थे जो की उस वक्त के किसी सम्राट ने नहीं किया था । अतः सन 260 में एक विशाल सेना के साथ उन्होंने दक्षिण की ओर प्रयाण किया । कलिंग सम्राट के पास भी एक बहुत बड़ी सेना थी । उनके बिच एक अत्यंत भीषण युद्ध हुआ । रणक्षेत्र में लगभग एक लाख  व्यक्ति मारे गए , 1.5 लाख बंदी हुए तथा उनसे कई गुना अधिक घायल हो गए। सम्राट अशोक के 13वें शिलालेख में हम इस युद्ध की भीषणता का वर्णन पाते है । इस युद्ध में इतनी भारी रक्तपात, तबाही व बर्बादी से अशोका के ह्रदय में बड़ा शोक उत्पन हुआ । तब से अशोक  को युद्ध से घृणा हो गई । तभी से उसने जीवन भर युद्ध ना करने का निर्णय ले लिया। कलिंग युद्ध अशोक के जीवन (life) का सबसे प्रथम और अंतिम युद्ध था, जिसने उसने जीवन को ही बदल डाला।

बौद्ध धर्म
एक बौद्ध भिक्षु की अहिंसात्मक शिक्षा का सम्राट अशोक पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और वह बौद्ध धर्म के हो गए । उसके बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की पुस्तकों का गहरा अध्यन किया और उसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया । इस प्रकार सम्राट अशोक ने निश्चय कर लिया की वह राज्य विस्तार की निति का परीत्याग कर देगा और भविष्य में कभी युद्ध नहीं करेंगे। इस प्रकार कलिंग युद्ध के बाद तलवार सदा के लिए म्यान में रख दी गई । उसके बाद युद्धघोष हमेशा के लिए बंद हो गया और इसके स्थान पर धर्मघोष की आवाज देश देशांतर में गूंजने लगी.

सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार

बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक ने उसके प्रचार करने का बीड़ा उठाया । उसने अपने धर्म के अनुशासन के प्रचार के लिए अपने प्रमुख अधिकारीयों युक्त ,राजूक और प्रादेशिक को आज्ञा दी। धर्म की स्थापना , धर्म की देखरेख धर्म की वृद्धि तथा धर्म पर आचरण करने वालो के सुख एवं हितों के लिए धर्म – महामात्र को नियुक्त किया । बौद्ध धर्म का प्रचार करने हेतु सम्राट अशोक ने अपने राज्य में बहत से स्थान पर भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ स्थापित की । विदेश में बौद्ध धर्म के परचार हेतु उसने भिक्षुओं की टीम भेजी । विदेश में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री तक को भिक्षु-भिक्षुणी के वेष में भारत से बाहर भेज दिया । इस तरह से वें बुद्ध धर्म का विकास करते चले गये। धर्म के प्रति सम्राट अशोक की आस्था का पता इसी से चलता है की वे बिना 1000 ब्राम्हणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खाते थे ।

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सम्राट अशोक की मृत्य

सम्राट अशोक ने लगभग 40 सालो तक शासन किया उसके बाद 72 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु पटलिपुत्र मे ही हो गई । सम्राट अशोक के मृत्यु के पश्चात् मौर्य राजवंश लगभग 60 सालो तक चला। उनकी पत्नी शाक्य कुमारी के बारे मे कुछ खास जानकारी किसी किताब या फिर कही और नहीं दी गई है। लेकिन उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा का उनके बौद्ध धर्म की प्रचार मे काफी योगदान रहा था।

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