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रामकृष्ण परमहंस जी का मानव उत्थान के लिए दृष्टांत

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एक बार एक नौका में कुछ विद्वान सुधारक प्रवास कर रहे थे। उन्होंने बातों ही बातां में नाविक से पूछा, क्या आप कुछ संसार के बारे में जानते हो? उसने कहा कि मेरा काम तो नाव चलाना है तो विद्वानों ने कहा, तुम्हें पता है इंग्लैंड में कितने एडवर्ड हुए हैं? लंदन शहर की आबादी कितनी है? शेक्स्पीयर के कौन से नाटक है?

नाविक ने उत्तर दिया मैं तो बस उसी प्रभु के सहारे नाव चला कर जीवन बसर कर रहा हूं। तभी विद्वान ने कहा तुम्हारी तीन चौथाई जिंदगी पानी में चली गई।
इतने में नदी में तूफान आया और नैया इधर-उधर डोलने लगी। नाविक ने विद्वानों से पूछा महाराज लगता है कि हमारी नौका पानी में डूब जायेगी अगर आप तैरना जानते हो तो अपने को बचा लीजिए तभी सभी विद्वानों ने कहा कि हम तैरना तो नही जानते हैं।

नाविक ने कहा, हरिहर ! आप तैरना नही जानते तब तो आपकी सारी जिंदगी पानी में चली जाएगी। हुआ भी ऐसा ही, तूफान में नौका डूब गई और सभी विद्वान भी डूब गए, पर नाविक तैरता हुआ बाहर आ गया।
विश्व प्रेमियों यह संसार भी एक समुद्र है इस भवसागर को पार करना ही होगा। सच्ची विद्या उसी संसार के मालिक से एकीकारिता करना है सिर्फ नाम जपने से कुछ नही होगा उसे अपने मन के मंदिर में तथा निश्चित होकर उसके साथ जुड़ने की चेष्टा करो।

विवाह, मृत्यु और भोजन में बदली (एक के बदले में दूसरा व्यक्ति) नहीं चल सकती, उसी प्रकार ईश्वर का ध्यान करना यानि भजन भी स्वयं ही करना पड़ता है चौबीसों घंटे अपने आप को चरणों में रखकर काम धंधा करो मन में पवित्राता, शांति आयेगी व जीवन सुखमय बीतेगा।
मनुष्य अपमान के कारण तभी दुःखी होता है जब वह अभिमानी होता है अगर प्रभु को परमात्मा मानते हो और अपने को आत्मा मानों तो आप पर उस अपमान का कोई असर नही होगा क्योंकि आत्मा पर तो किसी प्रकार का छींटा लग ही नहीं सकता। आत्मा परिपूर्ण है।

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