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गर्भवती महिलाओं को रखनी चाहिए ये सावधानियां

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Pregnant women should take these precautions गर्भ का पता चलते ही सही तिथि नोट करके रख लें, जिससे कि बाद में डॉक्टर को बताने में भूल न हो।

  • प्रारंभ से ही डॉक्टर से संपर्क करें। समय-समय पर अपनी जांच करती रहें और पूरी तरह डॉक्टरी निर्दशन में चलें। समीप के मातृ-केन्द्र, अस्पताल या प्राइवेट क्लीनिक में अपना नाम रजिस्टर्ड करा लें। वहां डॉक्टर द्वारा खून पेशाब, रक्तचाप, वजन, पोषण आदि की जांच होते रहने से गर्भवती को बहुत लाभ होगा। शरीर में यदि किन्हीं तत्त्वों की कमी है, गर्भवती को कोई रोग है, तो उसका निदान व इलाज समय पर किया जा सकेगा। वह डॉक्टरी सलाह से उचित भोजन, टॉनिक व दवाएं ले सकेगी। खून की जांच से पता चल जाएगा कि गर्भवती में खून की कमी तो नहीं है? साथ ही उसके ब्लड-ग्रुप का भी पता चल जाएगा और समय पर खून देने की आवश्यकता पड़े तो उसका पहले से इंतजाम किया जा सकेगा। जिन महिलाओं में खून आर. एच. नेगेटिव है, उनके शिशु की पीलिया या अन्य जटिलता से मृत्यु हो जाने का डर रहता है। समय से पूर्व आर. एच. नेगेटिव पता चल जाने की सावधानी बरती जा सकती है और शिशु में नया खून ‘ट्रांसफ्यूजन’ करा कर उसकी प्राण-रक्षा की जा सकती है।

  • जांच में आर.एच. नेगेटिव मिलने पर बच्चा होने के तीन दिन के भीतर मां को एक इंजेक्शन ( जो महंगा होता है व तीन-चार सौ में आता है ) देकर अगले बच्चे की सुरक्षाकी जा सकती है। खून की जांच से यौन रोग का भी समय से पूर्व पता लगा लिया जाता है। और समय रहते उसका उपपचार कर शिशु को विकृतियों से बचा लियाजाता है। इसके अलावा समय-समय पर वजन लेकर डॉक्टर यह भी बता सकेगी कि गर्भ में शिशु का विकास ठीक हो रहा है कि नहीं? इस प्रकार वजन, खुराक, रक्तचाप, बीमारियों और संभावित जटिलताओं पर नियंत्रण रखने में सहायता मिलेगी और प्रसव सामान्य, सरल व कष्टरहित, जच्चा-बच्चा के लिए हानिरहित कराया जा सकेगा।
  • कई महिलाएं पहले बच्चों की संख्या सही नहीं बतातीं, तो अपेक्षित सावधानी से वंचित रख समय पर डॉक्टर को कठिनाई में डाल देती हैं, जो स्वंय उनके हित में ठीक नहीं होता। पहले बच्चे के समय भी प्रसव कुछ कठिन होता है, दूसरे पूर्व इतिहास न होने से प्रसूता की विशेष प्रकृति का भी ज्ञान नहीं होता, तीसरे अनेक बार नई मां मनोवैज्ञानिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं होती और भयाक्रांत होती हैं, जिससे प्रसव में कठिनाई व जटिलताएं पैदा होती हैं। तो यह बहुत आवश्यक है कि पहला बच्चा अस्पताल में ही हो या घर पर कुशल प्रशिक्षित दाई द्वारा, ताकि समय पर कोई जटिलता पैदा होनेपर उसे संभाला जा सके।

  • यदि ये आवश्यक सावधानियां बरती जाएं और ठीक खुराक ली जाए, तो आजकल डॉक्टरी विज्ञान ने प्रसव को इतना सरल व हानिरहित व सरल बना दिया है कि भय या चिंता की कोई बात नहीं। नई माताओं को भी भय, चिंता से मुक्त होकर इसका सामना करना चाहिए और प्रसन्नता व गौरव से होने वाले शिशु की प्रतीक्षा करनी चाहिए। वैसे भी गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है, न ही इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, बल्कि बहुत बार तो मातृत्व के बाद नारी का सौंदर्य अधिक निखरता है। अतः चिंतारहित प्रसन्न मन से इसके लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए। यह मानसिक तैयारी और डॉक्टर से सहयोग भी प्रसव को सामान्य बनाने में मदद करता है। गर्भ में शिशु की सुरक्षा, उसका अच्छा शारीरिक-मानसिक विकास और प्रसव के बाद मां की दूध पिलाने की क्षमता इससे प्रभावित होती है। यह बात भी प्रत्येक मां को याद रखनी चाहिए।

  • घर के कामकाज के साथ हलके व्यायाम करना या सुबह-शाम टहलना भी चाहिए, ताकि स्वच्छ हवा, धूप मिले और खाना ठीक हजम हो। धूप से विटामिन ‘डी’ मिलती है, जो मां और शिशु की हड्डियों के लिए आावश्यक है। स्वच्छ हवा से अनेक बीमारियों से बचाव होता है। गर्भवती के लिए ठहलना सर्वोत्तम व्यायाम है। पर आंरभिक दिनों में और अंतिम दिनों में अधिक दूरी तक टहल कर थकना ठीक नहीं। यों भी अधिक परिश्रम के थकाने वाले कामों से बचना चाहिए। भारी वजन उठाने, लंबी यात्रा करने, दौड़-कूद करने तथा लंबे समय तक सीधे खड़े रहने से बचना जरूरी है। प्रथम तीन महीनों में और अंतिम दिनों तो इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। यदि पहले गर्भावस्था हो चुका हो, तो कामकाज व विश्राम के बारें में डॉक्टर की राय से ही चलना ठीक होगा।
  • गर्भवती के कपड़े ढीले व सुविधाजनक हों। पेट पर नाड़ा कस कर नहीं बांधना चाहिए, न ही तंग कपड़े पहनने चाहिए।
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