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कविता : कुछ हँस के बोल दिया करो- गुलज़ार

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कुछ हँस के बोल दिया करो,
कुछ हँस के टाल दिया करो,

यूँ तो बहुत परेशानियां है
तुमको भी मुझको भी,
मगर कुछ फैंसले
वक्त पे डाल दिया करो,
न जाने कल कोई
हंसाने वाला मिले न मिले..

इसलिये आज ही
हसरत निकाल लिया करो !!
समझौता करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा झुक जाना
किसी रिश्ते को हमेशा के लिए
तोड़ देने से बहुत बेहतर है ।

किसी के साथ हँसते-हँसते
उतने ही हक से रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का पानी धीरे से
पोंछना आना चाहिए !
रिश्तेदारी और दोस्ती में
कैसा मान अपमान ? बस अपनों के
दिल मे रहना
आना चाहिए…!
– गुलज़ार

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