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गीता ज्ञान – अध्याय 7 शलोक 22-30

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हरे कृष्ण। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मैंने मनुष्य को स्वतन्त्रत सत्ता दी है, वो जो भी करता है मैं उसे करने देता हूँ। मैं किसी की भी कार्य प्रणाली में कोई विघ्न पैदा नहीं करता।
मनुष्य की दो मनोवृत्ति है एक है छोड़ना और दूसरी है पकड़ना। परमानन्द की प्राप्ति के लिये मनुष्य को शास्त्रों में बताए गये मार्ग को पकड़ना चाहिये और भौतिक संसार को छोड़ना चाहिये। लेकिन जो मनुष्य अपनी दोनों प्रवृतियाँ सांसारिक भोग विलास की सामग्री इकट्ठा करने में लगा देते हैं। उन्हें प्राप्त करने के लिये विभिन्न देवताओं की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं तो वो देवता उनकी कामना पूरी करते हैं। तुलसी दास जी ने भी कहा है।
“जाके जेही पर परम स्नेहु,
तो तेहीं मिलहीं ना कछु संदेहु”
पूरी तन्मयता से सही दिशा में कर्म करने से लक्ष्य तो प्राप्त हो जाता है। प्रसन्नता भी मिलती है लेकिन भौतिक वस्तुएँ अस्थिर होने के कारण वह खुशी भी अस्थाई ही होती है। मोक्ष या परमानन्द की प्राप्ति का मार्ग तो भोग विलास की वस्तुऔं से मन को छुड़ाना और शास्त्रों में बताए गये मार्ग का अनुसरण करना ही है

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