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एडीसन एरनटेस डो नासाअमेंटो की जीवनी

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एडीसन एरनटेस डो नासाअमेंटो का जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ। इतने बड़े नाम से बुलाने में दिक्कत होती थी तो इस लड़के का नाम रखा गया ‘डिको’। परिवार की गरीबी दूर करने के लिए डिको को छोटी उम्र में जूते पॉलिश का काम करना पड़ा। डिको के पिता एक साधारण फुटबॉल खिलाड़ी थे और उन्हें देखकर डिको को फुटबॉल का शौक लगा। कुछ समय बाद डिको की स्कूली पढ़ाई शुरू हुई। वह स्कूल गया तो उसके दोस्तों ने एक गोलकीपर बिले के नाम पर चिढ़ाते हुए उसे पेले नाम दिया। डिको को अपने नये नाम से चिढ़ थी थी पर वह जितना चिढ़ता गया उसके साथ यह नया नाम उतना चिपकता गया।

स्कूल के दिनों में डिको अपनी गरीबी दूर करने के लिए पायलट बनने का सपना देखता था। खाली समय में वह फुटबॉल भी खेलता था। डिको ने अपने पिता से ही फुटबॉल सीखना शुरू किया। उसके पास फुटबॉल खरीदने के पैसे नहीं होते थे तो डिको के दोस्त गली में कागज़ और कपड़े की गेंद बनाकर फुटबॉल खेलते थे। इन्हीं दोस्तों के साथ मिलकर डिको ने पहला फुटबॉल क्लब बनाया था।

Edison Arntes Dow Nasaamento biography in hindi

जब डिको 12 साल का था तब उसने एक क्लब से जुड़कर फुटबॉल प्रतियोगिता में भाग लिया और सबसे ज़्यादा गोल मारकर अपनी टीम को जिता ले गया। इसके बाद डिको के दिमाग में फुटबॉल धमाचौकड़ी मचाने लगी। अपने दोस्तों की मदद से डिको एक जूनियर क्लब से जुड़ा। उसकी ज़िंदगी में निर्णायक मोड़ तब आया जब पता चला कि नए क्लब में उसे ब्राजील के स्टार फुटबॉल व्लादेमर डी ब्रिटो कोचिंग देंगे। एक साल तक ब्रिटो ने पेले को फुटबॉल खेलना सिखाया और फिर किन्हीं कारणों से क्लब से अलग हो गए। फिर सीनियर टिम नाम के खिलाड़ी ने डिको और उसके दोस्तों को कोचिंग देनी शुरू की। टिम ने ही डिको को एक बड़े क्लब से जुड़ने में मदद की।

डिको शुरूआत में शरीर से कमज़ोर था, क्योंकि उसका बचपन रूखा-सूखा खाकर गुजरा था। शारीरिक रूप से मज़बूत नहीं होने के कारण उसका चयन सीनियर टीम में नहीं हो सका। पर डिको को अच्छा खाना पीना मिलने लगा ताकि वह मजबूत खिलाड़ी बन सके। डिको को 15 साल की उम्र में पहला बड़ा अवसर मिला जब एक शीर्ष खिलाड़ी चोटिल हो गया। अपने दूसरे मैच में डिको ने अपने करियर का पहला गोल मारा। क्लब फुटबॉल खेलते हुए डिको ने सभी को अपने खेल से चकित कर दिया और फिर एक दिन रेडियो पर 1958 में स्वीडन में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए ब्राजील टीम में चुने जाने की सूचना पाकर डिको की आँख से आंसू आ गए। 1958 से पहले ब्राजील ने कोई वर्ल्ड कप नहीं जीता था। डिको टीम में तो चुना गया पर स्वीडन के वर्ल्ड कप में क्वार्टर फाइनल तक वह एक भी गोल नहीं कर पाया। वेल्स के विरुद्ध क्वार्टर फाइनल में उसने यादगार गोल किया। इसी गोल से ब्राजील जीता। पूरा स्वीडन डिको के खेल कौशल का दीवाना हो गया।

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