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कविताएँ

बाल कविता – चूहा

छत अलमारी तोड़े चूहा दीवारों को फोड़े चूहा जहाँ जगह पाता बस फौरन बिल अपना ही जोड़े चूहा! चूं-चूं करके सदा फुदकता हर इक चीज़ झिंझोड़े चूहा पर पूसी की गन्ध पाते ही अपने बिल में दौड़े चूहा! गेहूं-चावल-रोटी-कागज़ कुछ भी तो न छोड़े चूहा छीके में से…

कविता : कुछ हँस के बोल दिया करो- गुलज़ार

कुछ हँस के बोल दिया करो, कुछ हँस के टाल दिया करो, यूँ तो बहुत परेशानियां है तुमको भी मुझको भी, मगर कुछ फैंसले वक्त पे डाल दिया करो, न जाने कल कोई हंसाने वाला मिले न मिले.. इसलिये आज ही हसरत निकाल लिया करो !! समझौता करना सीखिए.. क्योंकि…

कविता : रिश्ते

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं।। नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले…

कविता एक, पर अंदाज अलग-अलग

एक नवयुवती छज्जे पर बैठी है, केश खुले हुए है और चेहरे को देखकर लगता है की वह उदास है, उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है। विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते : रहीम रहिमन…